रतनमणी डोभाल/विकास कुमार।
बैरागी कैंप की सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर बनाए गए मंदिर ग्यारह साल बाद हटा दिए गए। हालांकि मंदिर के साथ हाल ही में बनाए जा रहे संत निवास को भी गिरा दिया गया। हालांकि मंदिरों को हटाए जाने का फैसला कोर्ट का था जिसमें 31 मई से पहले प्रशासन को अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करनी थी। लेकिन संत निवास जिसे बैरागी संतों ने बैरागी कैंप की जमीन पर बनाए थे, उसे भी प्रशासन ने गिरा दिया। हालांकि सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को हटाए जाना प्रशासनिक प्रक्रिया है लेकिन इसे कुंभ के दौरान बैरागी संतों द्वारा कुंभ मेला के सीनियर अफसर हरवीर सिंह की पिटाई के बदले के तौर पर भी देखा जा रहा है। क्योंकि, बैरागी कैंप में अतिक्रमण सिर्फ संतों का ही नहीं है बल्कि वहां कई रिहायशी लोगों ने भी सरकारी जमीन पर अतिक्रमण किया हुआ है और जिस पर प्रशासन राजनीतिक दबाव के चलते आज तक कार्रवाई नहीं कर पाया है।
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क्या है मामला
हालांकि बैरागी कैंप की सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण को कुंभ से पहले गिराया जाना था लेकिन कुंभ के चलते प्रशासन ने समय मांगा था और समय पूरा होने के बाद इन्हें गिरा दिया गया। हालांकि स्थानीय जनप्रतिनिधियों जिनमें मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद भी शामिल थे, उन्होंने आखिरी तक मंदिरों को ना हटाने के लिए प्रयास किए लेकिन सोमवार सुबह मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया। हालांकि मंदिर गिराए जाने से पहले इनमें रखी मूर्तियों को हटा लिया गया था।
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अपर मेलाधिकारी की हुई थी पिटाई
वहीं कुंभ के दौरान अव्यवसथाओं के लेकर बैरागी संतों ने अपर मेलाधिकार हरबीर सिंह की पिटाई कर दी थी। हालांकि दोनों पक्षों में बाद में सुलह समझौता करा दिया गया था। लेकिन, इस बीच संतों ने संत निवास क निर्माण शुरु कर दिया और हरवीर सिंह का तबादला देहरादून कर दिया गया। लेकिन इस बीच प्रशासन ने संत निवास पर बुल्डोजर चला दिया। इसके बाद संत धरने पर बैठ गए थे। माना जा रहा है कि संत निवास को गिराने में प्रशासन ने जितनी जल्दबाजी दिखाई, उससे कहीं ना कहीं ये भी बात सामने आ रही है कि प्रशासन ने अपने अफसर के साथ हुई पिटाई का बदला ले लिया।
वरिष्ठ पत्रकार आदेश त्यागी मानते हैं कि बैरागी कैंप में अतिक्रमण को हटाना सही है। क्योंकि संत हो या आम आदमी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण पर कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन बैरागी कैंप में केवल संतों ने ही अतिक्रमण नहीं किया है वहां कई दूसरे लोगों का भी अतिक्रमण है जिस पर राजनीतिक संरक्षण के कारण प्रशासन कार्रवाई नहीं करता है। इस मामले में कोर्ट के आदेश के अलावा संत निवास को गिराया जाना कहीं ना कहीं मामले को हरवीर सिंह प्रकरण से जोड कर देखा जा रहा है।
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क्या कहते हैं संत
संतों की ओर से कार्रवाई को गलत बताया गया है और इसे हिंदू धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बताया गया है। वहीं अखाडा परिषद की ओर से भी इस पर आपत्ति दर्ज की गई है।
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