Aiims Rishikesh Black Fungus death in uttarakhand

एम्स में ब्लैक फंगस के 12 नए मामले सामने आए, कैसे पहचाने और बचें, बताया एम्स निदेशक डा. मलिक ने


विकास कुमार।
एम्स ऋषिकेश में ब्लैक फंगस के 12 नए मामले दर्ज किए गए हैं। अब तक एम्स में 42 लोगों में ब्लैक फंगस के मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से दो लोगों की मौत भी हो चुकी है। फिलहाल 39 मरीज अस्पताल में भर्ती हैं। जिनमें से जिनमें से 21 लोगों की सर्जरी होनी बाकी है। कुल भर्ती मरीजों में 21 उत्तराखंड के और शेष 21 उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। वहीं एम्स निदेशक डा. रविकांत मलिक ने ब्लैक फंगस को गंभीरत से लेने की हिदायत दी है। साथ ही इसकी पहचान और बचाव के तरीके भी बताए हैं। अत्यधिक संक्रामक बीमारी म्यूकोर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) के निदान के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश में अलग से एक विशेष वार्ड स्थापित किया गया है। जिसमें ब्लैक फंगस से ग्रसित रोगियों का उपचार विभिन्न विभागों के 15 विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में किया जाएगा।

निदेशक एम्स पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस एक घातक एंजियोइनवेसिव फंगल संक्रमण है, जो मुख्यरूप से नाक के माध्यम से हमारी श्वास नली में प्रवेश करता है। मगर इससे घबराने की नहीं बल्कि सही समय पर इलाज शुरू कराने की आवश्यकता है। संस्थान के नोडल ऑफिसर कोविड डाॅ. पी.के. पण्डा जी ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस के उपचार के लिए गठित 15 सदस्यीय चिकित्सकीय दल इस बीमारी का इलाज, रोकथाम और आम लोगों को जागरुक करने का कार्य करेगी। टीम के हेड और ईएनटी के विशेषज्ञ सर्जन डा. अमित त्यागी जी ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस के रोगियों के इलाज के लिए अलग से एक म्यूकर वार्ड बनाया गया है। जिसमें सीसीयू बेड, एचडीयू बेड और अन्य आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं।

::::::::::::::::::::: म्यूकोर के प्रमुख लक्षण-

तेज बुखार, नाक बंद होना, सिर दर्द, आंखों में दर्द, दृष्टि क्षमता क्षीण होना, आंखों के पास लालिमा होना, नाक से खून आना, नाक के भीतर कालापन आना, दांतों का ढीला होना, जबड़े में दिक्कत होना, छाती में दर्द होना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। यह बीमारी उन लोगों में ज्यादा देखी जा रही है, जिन्हें डायबिटीज की समस्या है।

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उच्च जोखिम के प्रमुख कारण-

1- कोविड-19 का वह मरीज जिसका पिछले 6 सप्ताह से उपचार चल रहा हो।
2- अनियंत्रित मधुमेह मेलिटस, क्रोनिक ग्रेनुलोमेटस रोग, एचआईवी, एड्स या प्राथमिक इम्युनोडेफिशिएंसी स्टेटस।

  1. स्टेरॉयड द्वारा इम्यूनोसप्रेशन का उपयोग (किसी भी खुराक का उपयोग 3 सप्ताह या उच्च खुराक 1 सप्ताह के लिए ), अन्य इम्युनोमोड्यूलेटर या प्रत्यारोपण के साथ इस्तेमाल की जाने वाली चिकित्सा।
  2. लंबे समय तक न्यूट्रोपेनिया।
  3. ट्रॉमा, बर्न, ड्रग एब्यूजर्स।
  4. लंबे समय तक आईसीयू में रहना।
  5. घातक पोस्ट ट्रांसप्लांट ।
  6. वोरिकोनाजोल थैरेपी, डेफेरोक्सामाइन या अन्य आयरन ओवरलोडिंग थैरेपी।
  7. दूषित चिपकने वाली धूल, लकड़ी का बुरादा, भवन निर्माण और अस्पताल के लिनेन।
  8. कम वजन वाले शिशुओं, बच्चों व वयस्कों में गुर्दे का काम नहीं करना और दस्त तथा कुपोषण।

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बचाव एवं सावधानियां-

1- अपने आस-पास के पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए ब्रेड, फलों, सब्जियों, मिट्टी, खाद और मल जैसे सड़ने वाले कार्बनिक पदार्थों से दूर रहना।
2- हायपरग्लेमिया को नियं​त्रित रखना।
3- स्टेरॉयड थैरेपी की आवश्यकता वाले कोविड- 19 रोगियों में ग्लूकोज की निगरानी करना।
4- स्टेरॉयड के उपयोग के लिए सही समय, सही खुराक और सही अवधि का निर्धारण।
5- ऑक्सीजन थैरेपी के दौरान ह्यूमिडिफायर के लिए स्वच्छ व शुद्ध जल का उपयोग करें।
6- एंटीबायोटिक्स व एंटीफंगल का प्रयोग केवल तभी करें, जब चिकित्सक द्वारा परामर्श दिया गया हो।
7- बंद नाक वाले सभी मामलों को बैक्टीरियल साइनसिसिस के मामलों के रूप में नहीं मानें।
8- म्यूकोर के लक्षण महसूस होने पर मेडिसिन, ईएनटी और नेत्र विशेषज्ञों को दिखाना चाहिए।

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