गोपाल रावत/विकास कुमार।
कुंभ मेला हरिद्वार 2021 में सबसे ज्यादा अगर किसी की चर्चा हो रही है तो वो है किन्नर अखाडा, किन्नर अखाडे की उन महिला संतों को देखने, उनका आशीर्वाद और सेल्फी लेने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है, जिन्हें कभी हीनता की नजरों से देखा जाता और समाज में तिरस्कार किया जाता था। किन्नर समाज को ये सम्मान दिलाया है किन्नर अखाडे की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने जिनका जीवन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। कभी मुंबई के डांस बार की धडकन रही लक्ष्मी के बार डांसर बनने और बार डांसर से किन्नर समाज की मसीहा और फिर किन्नर अखाडे की आचार्य महामंडलेश्वर यानी सर्वोच्च गुरु बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है। लक्ष्मी कहती है उनकी जिंदगी खुली किताब है और वो अपने अतीत से कभी नहीं मोडती है बल्कि उसका सामना मजबूती से करती हैं।
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महाराष्ट्र के ब्राह्मण परिवार में हुआ जन्म
लक्ष्मी का जन्म एक लडके के तौर पर ठाणे में रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार में 13 दिसंबर 1978 को मालती बाई अस्पताल में हुआ था। शुरुआती स्कूलिंग के बाद उन्होंने ग्रेजुएशन किया और फिर भारतनाट्यम में पोस्ट ग्रेजुएशन की तालीम हासिल की। बतौर डांसर उन्होंने अपनी पहचान बनाना शुरु कर दी थी।

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कैसे लक्ष्मी बनी बार डांसर
लक्ष्मी का जीवन सीधा सपाट चल रहा था लेकिन इस बीच उनकी मुलाकात पहले ट्रांसजेंडर छात्र शबीरा से हुई, जिसके जरिए वो हिजडा/किन्नर समाज से रुबरु हुई। किन्नर समाज से जान—पहचान होने के बाद उन्होंने बार डांसर के तौर पर अपना करियर शुरु किया और उनके डांस के कायल लोग शहर के विभिन्न इलाकों से उन्हें देखने आने लगे और वो बहुत लोकप्रिय भी हो गई।
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बार डांसर से लक्ष्मी कैसी बनी किन्नरों की मसीहा
बतौर बार डांसर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का जीवन ठीक—ठाक चल रहा था और इस दौरान उनकी किन्नर समाज से नजदीकी भी बढ रही थी और उनकी समस्याओं को लेकर भी लक्ष्मी की समझ और ज्यादा गहरी होती जा रही थी। लेकिन लक्ष्मी के जीवन में महाराष्ट्र सरकार के एक आदेश ने भूचाल ला दिया, जिसमें मुंबई के सभी डांस बार को बंद करने के आदेश दिए गए थे। मुंबई की हजारों बार आंदोलन पर उतर आई और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को पहली बार किसी आंदोलन में भाग लेने का मौका मिला और इस घटना ने उनका जीवन ही बदल दिया। इसी बीच लक्ष्मी ने एलजीबीटी यानी लेस्बियन और गे समुदाय, किन्नर/ हिजडा समुदाय के सामने आ रही दिक्कतों को उठाना शुरु कर दिया और देखते ही देखते वो किन्नर समाज की आवाज बन गई। साल 2002 में वो दाई वेलफेयर सोसायटी जो समूचे दक्षिण एशिया में हिजडा समुदाय की आवाज उठा रहा था, की अध्यक्ष बन गई और 2007 में उन्होंने अपना संगठन असितत्व शुरु कर दिया। यही नहीं उन्होंने कनाडा में उन्होंने हिजडा समुदाय का प्रतिनिधित्व भी किया जिसे खूब सराहा गया। अपनी बोलने की शैली, बेबाक अंदाज ने उन्हें और ज्यादा लोकप्रियता दी।

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कैसे बना किन्नर अखाडा
किन्नर और हिजडा समुदाय का पूरे देश से लक्ष्मी को समर्थन मिल रहा था लेकिन अभी समाज में उन्हें हिकारत भरी नजरों से देखा जाता था और इसी बीच साल 2018 में किन्नर अखाडे की स्थापना हुई और लक्ष्मी किन्नर अखाडे की प्रवक्ता बन गई। यही वो साल था जब सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 पर ऐतिहासिक फैसला दिया और इस धारा को अस्तित्वहीन बना दिया और इसी के साथ किन्नर समाज को नई पहचान मिल गई। इस केस की पैरवी में लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी पूरे देश में हीरो बनकर उभरी और इसी के साथ किन्नर अखाडे ने 2019 के इलाहाबाद कुंभ में शाही स्नान करने का ऐलान कर दिय और किन्नर अखाडे का साथ दिया नागा संन्यासियों के सबसे बडे जूना अखाडे ने। तमाम विरोध के बाद जूना आज भी किन्नर अखाडे के साथ खडा है और हरिद्वार कुंभ 2021 में भी जूना ने ये साथ निभाया। शाही स्नान के दौरान किन्नर अखाडे ने गंगा स्नान भी किया।

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वायरल तस्वीरों पर बोली मेरा जीवन खुली किताब
हाल ही में लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की शुरुआती दिनों की तस्वीरें वायरल की गई। लेकिन इन तस्वीरों पर लक्ष्मी ने कहा कि मेरा जीवन खुली किताब है और मैं अपने अतीत से मुंह नहीं मोडती हूं। किन्नर समाज को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यही नहीं वो लगातार किन्नर अखाडे के संतों को उनका हक दिलाने के लिए संघर्ष् कर रही हैं। हाल ही में सीएम तीरथ सिंह रावत से मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि किन्नर समाज आज भी उपेक्षित है और अपनी जीवन यापन के लिए कभी उन्हें भीख मांगनी पडती है तो कभी जिस्म बेचना पडता है। हमें आशा है कि लोग इस उपेक्षित समाज के प्रति अपनी सोच बदलेंगे।
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