विकास कुमार।
73 साल के हरीश रावत सांसद रहे, मंत्री रहे और मुख्यमंत्री भी रहे, लेकिन आज हम उनके कामों के बारे में नहीं बल्कि आज हम उनकी राजनीतिक शख्सियत के बारे में चर्चा कर रहे हैं। एक नेता के तौर उनके राजनीतिक जीवन, उनके व्यवहार, उनके बोलने के अंदाज, उनकी मुस्कराहट के पीछे छिपी राजनीति, उनके शब्दों—मुहावरों और गंभीर से गंभीर सवाल/बात को भी बहुत ही हल्के लेकिन सधे अंदाज में कह देने की उनकी कला से आज की पीढ़ी के नेता उनसे क्या सीख सकते है। साथ ही हरीश रावत की राजनीति में वो क्या खामियां रही जिससे बचने की कोशिश करनी चाहिए। हमने उत्तराखण्ड के वरिष्ठ पत्रकारों से जानने की कोशिश की…
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हरीश रावत की इन खूबियों का कोई जोड़ नहीं
वरिष्ठ पत्रकार अवनीश प्रेमी कहते हैं कि हरीश रावत राजनीति की चलती—फिरती एक पाठशाला जैसे हैं। उनकी राजनीतिक समझ बहुत गहरी है। उनके हर एक्ट में राजनीति हैं। सबसे खास बात ये कि वो किसी से भी अपनी नाराजगी जाहिर नहीं करते हैं। उनकी बातों उनके कटाक्ष में दोहरे मायने छिपे होते हैं और बहुत ही गंभीर बात को भी हल्के—फुल्के अंदाज में कह देते हैं, जो अमूमन कम ही नेताओं में होता है। किस नेता का कहां, कब और कैसे और कितना प्रयोग करना है, हरीश रावत ये बेहतर तरीके से जानते हैं। कुमाउं के वरिष्ठ पत्रकार विपिन चंद्रा कहते हैं राज्य की राजनीति में वजूद इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपकी दिल्ली में पहुंच कैसी है। हरीश रावत में दिल्ली के अलग—अलग शक्ति केंद्रों को साध लेने की गजब की कला है।
हरीश रावत को उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति, खान—पान यहां की रीति रिवाजों, लोक परंपराओं के ब्रांड एम्बेसडर कहा जा सकता है। उनकी अपनी इस ताकत का पता है इसलिए वो उत्तराखण्ड और उत्तराखण्डियत की बात कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार रतनमणी डोभाल बताते हैं कि दूसरे नेताओं की तरह ही हरीश रावत में भी कुछ खूबियां और कमियां हैं लेकिन उनमें ये खास बात है कि वो लाइन खींच कर राजनीति नहीं करते हैं और सत्ता सुख होने के बाद भी चरित्र को कैसे साफ रखा जा सकता है। ये हरीश रावत से सीखना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार राव शफात अली कहते हैं कि हरीश रावत एनडी तिवारी के बाद अकेले ऐसे नेता है कि जिनकी पहाड और मैदान दोनों में खासी लोकप्रियता हैं। पुरानी पीढी के नेता होने के बाद भी सोशल मीडिया को अपनी ताकत कैसे बनाया जा सकता है, ये नए नेताओं को सीखना चाहिए। उनका हौंसला, जज्बा और हार कर दोबारा खडे हो जाने की हिम्मत कमाल की है।
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हरीश रावत की क्या कमियां हैं
वरिष्ठ पत्रकार अवनीश प्रेमी बताते हैं कि हरीश रावत के बारे में ये कहावत है कि वो बच्चे को बालिग होने तक बिना दूध के पाल सकते हैं। वो किसी को सीधा दो टूक नहीं बोल पाते हैं। इसलिए कई बार उनको नुकसान भी होता है। वरिष्ठ पत्रकार विपिन चंद्रा बताते हैं कि हरीश रावत अपने सामने किसी दूसरे नेता के बढे कद को पचा नहीं पाते हैं। शक्ति के संतुलन वाले नियम का ज्यादा प्रयोग करते हैं, जिसके कारण संगठन के इतर हरीश कांग्रेस का वजूद नजर आता है। वरिष्ठ पत्रकार रतनमणी डोभाल बताते हैं कि अभी तक अपनी राजनीतिक विरासत ना खडा कर पाना भी उनकी एक कमी माना जा सकता है। वरिष्ठ पत्रकार राव शफात अली बताते हैं कि कई बार वो सही फैसला नहीं ले पाते हैं। यही कारण है कि तमाम खूबी होने के बाद भी वो दोनों जगह से चुनाव हार गए।
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