विकास कुमार।
हरिद्वार ग्रामीण में बहुत ही कांटे का मुकाबला हो चला है। निर्णायक भूमिका वाले दलित समुदाय का मूड बदला—बदला सा नजर आ रहा है। दलितों में बेरोजगारी और महंगाई की समस्या बडी है और पिछडापन सबसे ज्यादा है। हरिद्वार ग्रामीण पर रहने वाला दलितों के पास रोजगार के कोई खास साधन नहीं है। मजदूरी अधिकतर लोग करते हैं, कुछ लोगों के पास जमीन है लेकिन छोटी जोत होने के कारण माली हालत अभी भी जस की तस है। उधर, कोरोना काल में मजदूरी चले जाने और बेरोजगारी व महंगाई ने यहां के लोगों को झकझोर दिया है। इसलिए, दलित बस्तियों में वोटरों में गुस्सा है और लोग बदलाव की बात कर रहे हैं।
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हमारी पीडा कोई पूछने नहीं आया
मिश्रपुर निवासी राज कुमार ने बताया कि हमारे समुदाय में बेरोजगारी ज्यादा है। लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है। महंगाई चरम पर है ऐसे में गुजारा करना मुश्किल साबित हो रहा है। उन्होंने कहा कि नेता आते हैं और वोट लेने के बाद पूछते तक नहीं। उन्होंने कहा कि इस बार में सोच समझकर ही वोट करेंगे।
जियापोता निवासी अनिल सिंह ने बताया कि हमारी बस्तियों में कांग्रेस, भाजपा, बसपा और अन्य दल आते हैं और झंडे लगाकर चलते बनते हैं। हमें वोट बैंक समझ रखा है। लेकिन बाद में हमारी बस्तियों में मूलभूत सुविधाओं को दरकिनार कर दिया जाता है। हम सम्मान सबका करेंगे लेकिन इस बार पुरानी गलती नहीं दोहराएंगे।
वहीं भोगपुर निवासी राजू ने बताया कि पिछली बार मोदी लहर थी लेकिन इस बार बहुत ज्यादा लोग खुलकर बोल नहीं रहें हैं। लेकिन लोगों में महंगाई, बेजरागारी और नौकरी ना मिलने से गुस्सा है। उन्होंने बताया कि निजीकरण के कारण खत्म हो रहे आरक्षण से भी दलितों में नाराजगी है।
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