विकास कुमार/अतीक साबरी।
पानीपत की तीसरी जंग में अहमद शाह अब्दाली और मुगलों की संयुक्त सेना ने मराठाओं को बुरी तरह हराया, जिसके बाद मराठा साम्राज्य को उत्तर भारत में दोबारा पांव पसारने में करीब दस साल लग गए। लेकिन पानीपत की तीसरी लडाई का परिणाम मुगलों और अफगान रोहिल्ला सरदारों के बीच ऐसी दुश्मनी की नींव रखने जा रहा था, जिसका खामियाजा पानीपत की लडाई में मराठों के खिलाफ हिस्सा लेने वाले मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को 27 साल बाद चुकाना पडा।
शाह आलम द्वितीय को 1788 में रोहिल्ला सरदार और नजीबाबाद जो उत्तरप्रदेश के बिजनौर जनपद का हिस्सा के नवाब नजीबुददौला के पोते गुलाम कादिर रोहिल्ला ने जबरन बंधक बना लिया और शाह आलम की आंखें फोड दी। यही नहीं मुगल राजकुमार और राजकुमारियों व अन्य परिवारवालों के साथ बहुत ही बुरा व्यवहार किया गया। राजकुमारियों को दरबार में गुलाम कादिर ने नंगा नचाया और उनके साथ बलात्कार किया गया। इतिहासकार बताते हैं कि ढाई महीने के गुलाम कादिर रोहिल्ला के कार्यकाल के दौरान लालकिले में रहने वाले करीब 21 राजकुमार और राजकुमारियों की मौत हो गई। कईयों ने बेइज्जती और मुगल साम्राज्य की इज्जत के कारण यमुना में डूबकर मौत को गले लगा लिया।
लेकिन सबसे बडा सवाल ये है कि आखिर मराठाओं के खिलाफ पानीपत की तीसरी जंग में कंधे से कंधा मिलाकर लडने वाले मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय और उनके सेनापति नवाज नजीबुदौला के खानदान के बीच ऐसा क्या हुआ जो नजीब के पोते ने मुगलों से इतना खौफनाक बदला लिया…आइये जानते हैं। पानीपत की तीसरी जंग हारने के बाद मराठाओं को गहरा सदमा लगा, यहां तक कि उनके पेशवा बालाजी बाजी राव हार के सदमे से चल बसे। मराठाओं ने ठीक दस साल बाद 1771 में दिल्ली पर महादाजी शिंदे की अगुवाई में चढाई की और शाह आलम द्वितीय ने अपने हथियार डाल दिए। मुगलों की सेना को साथ लेकर मराठा पानीपत में मिली हार का बदला लेने के लिए नवाब नजीबदुौला के रोहिलखंण्ड नजीबाबाद कूच कर गए। हालांकि तब तक नजीबुदौला की मौत हो चुकी थी और शासन नजीब का बेटा जाबिता खान चला रहा था। मराठाओं ने जाबिता खान को हराया और नजीबाबाद में पत्थरगढ किले को घेर लिया, जहां अफगान सरदारों और नजीब का परिवार शरण लिए हुए था। जाबिता खान जंग में हारने के बाद भाग गया लेकिन मराठाओं ने अफगान औरतों को अपने कैंप में ले जाकर उनका शारीरिक शोषण किया। यहां तक कि लूट के बाद नजीबदुौला का मकबरा भी तहस नहस कर दिया। हालांकि नजीब के परिवार को मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के सेनापत नजफ खान ने किसी तरह मराठाओं से विनती कर बचाया और दिल्ली ले आया। इस दौरान जाबिता खान का बडा बेटा गुलाम कादिर रोहिल्ला महज चार या पांच साल की उम्र का रहा होगा। इसके बाद मराठा लौटे और जाबिता खान अपने बचे कुचे सरदारों के साथ सिक्ख फौजों के समर्थन से मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को चुनौती देता रहा।
शाह आलम द्वितीय केा अब मराठाओं का समर्थन हासिल था और शाह आलम महज नाम के बादशाह रह गए थे, उनके बार में ये कवाहत भी प्रचलित थी कि सुल्तान ए शाह आलम, अज दिल्ली ता पालम यानी शाह आलम का साम्राज्य महज दिल्ली से पालम तक ही बचा है। खैर अफगान रोहिलला सरदार जाबिता खान शाह आलम के खिलाफ लगातार बगावत कर रहा था। जिससे परेशान होकर मराठाओं को साथ लेकर एक बार फिर मुगल सेना ने जाबिता खान को सहारनपुर के गौसगढ किले में घेर लिया। हालांकि यहां से जाबिता खान बच निकला लेकिन उनके बडे बेटे गुलाम कादिर रोहिल्ला और उसके चाचा सुल्तान खान व अन्य रोहिल्ला सरदारों कोे मुगल सेना ने बंधक बना लिया। बताया जाता है कि इस दौरान मुगलों और मराठों की सेना ने अफगान औरतों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया। वहीं बाकी सब को आगरा भेज दिया गया लेकिन जाबिता खान के बेटे गुलाम कादिर को दिल्ली लाया गया जहां उसे कुदुसिया बाग में कैद कर लिया गया।
गुलाम कादिर को शाह आलम अपने बेटे जैसा मानते थे और उसे रोशन उददौला का खिताब भी दिया। यही नहीं शाह आलम ने गुलाम कादिर के लिए कविताएं भी लिखी। लेकिन, गुलाम कादिर बहुत ही ज्यादा खूबसूरत था और लाल किले में बेगमों और राजकुमारियों में उसके प्रति आकर्षण था जिससे डरकर शाह आलम ने नशे की दवाई देकर गुलाम कादिर को बधिया करा दिया यानी अब गुलाम कादिर कभी बाप नहीं बन सकता था। ये बात गुलाम कादिर को ठेस पहुंचा गई और बाद में गुलाम कादिर को शाह आलम ने उसके पिता जाबिता खान के पास वापस भेज दिया। इधर, जाबिता खान की मौत 1785 में होने के बाद गुलाम कादिर ने अपने दादा और पिता की तरह ही मुगल सेना का सेनापति बनने की चाह रखी और दिल्ली पर चढाई कर दी। हालांकि 1787 में गुलाम कादिर सफल नहीं हो पाया लेकिन 1788 की जुलाई में में गुलाम कादिर अपने दो हजार सैनिकों के साथ लाल किले पहुंच गया और शाह आलम द्वितीय को बंधक बना लिया।
गुलाम कादिर ने अपने अफगानी चाकू से शाह आलम की आंखे नोंच दी और उसकी छाती पर बैठकर एक आंख निकाल दी जबकि दूसरी आंख अपने वफादार से निकलवा दी। गुलाम कादिर ने शाह आलम को अंधा करने के बाद कहा था कि गौसगढ में जो तुमने किया था ये उसका बदला है। अफगान अपने दुश्मन को कभी नहीं भूलते। यही नहीं गुलाम कादिर ने राजकुमारियों के भरे दरबार में कपडे उतरवा दिए और उनसे नंगा नाच कराया यही नहीं कईयों के साथ बलात्कार भी किया गया। यहां तक कि एक विधवा बेगम को नंगी कर धूप में बिठाया गया। पांच दिन तक राजकुमार और राजकुमारियों को बिना पानी और खाने के रखा गया। जिसमें कईयों की मौत हो गई जबकि कई राजकुमारियों ने अपनी इज्जत के कारण यमुना में कूदकर जान दे दी। लाल किले में मुगलों के खजाने की खोज के लिए उसने लाल किले को बरबाद कर दिया, इतिहासकार बताते है कि उस दौरान जो नुकसान हुआ उसकी कीमत तब के करीब 25 करोड रूपए आंकी गई थी।
करीब ढाई महीने लाल किले में गुलाम कादिर रोहिल्ला ने भय का नंगा नाच किया। बाद में शाह आलम को अंधा करने की बात मराठा सरदार महादाजी शिंदे को पता लगी तो उन्होंने लाल किले पर चढाई कर दी। वहीं सरधना से बेगम समरू भी अपने सैनिकों के साथ दिल्ली कूच कर गई। खुद को घिरता देख गुलाम कादिर वहां से भाग गया और मिरात किले में गुलाम कादिर अपने 500 घुडसवारों के साथ जमा था जिसे मराठा सैनिकों ने घेर लिया। खुद को फंसता देख गुलाम कादिर वहां से निकलकर सहारनपुर की ओर जाने लगा लेकिन रास्ता भटक गया और पैदल भागता हुआ उत्तरप्रदेश के बामनौली में एक ब्राहमण परिवार के घर पहुंचा। यहां ब्राहमण परिवार ने उसे पहचान लिया और मराठाओं को मुखबिरी कर दी। 18 दिसम्बर 1788 को गुलाम कादिर को पकड लिया गया और उसे बंधक बना लिया गया। हालांकि काफी समय मराठाओं ने गुलाम कादिर को बंदी बनाए रखा। लेकिन 28 फरवरी को शाह आलम द्वितीय ने महादाजी शिंदे को पत्र लिखा और गुलाम कादिर की आंखे निकालने के लिए कहां और लिखा कि ऐसा नहीं हुआ तो वो मक्का चलें जाएंगे व एक भिखारी की तरह जीवन यापन करेंगे। इसके बाद महादाजी शिंदे ने गुलाम कादिर के कान काटने और अंांखे निकालने के आदेश दिए। अगले दिन उसके हाथ और जननांग काट दिए। वहीं तीन मार्च 1789 को मथुरा में गुलाम कादिर का सर कलम कर दिया गया। इससे पहले महादाजी शिंदे ने गुलाम कादिर के कान और आंखे शाह आलम द्वितीय को भेज दी थी।