का झुण्ड

गंगा तटों पर लगा पक्षियों का कुंभ, मनमोहक नजारें देख लुत्फ उठाएं


विकास कुमार।
मौसम का मिजाज बदलते ही हरिद्वार के गंगा तटों पर प्रवासी पक्षियों का मेला सज गया है। तिब्बत की पहाडियों को पार कर सुर्खाब हरिद्वार पहुंच गया है। बडी संख्या में इस बार सुर्खाब हरिद्वार आए हैं। इसके साथ ही साइबेरिया और ठंडे प्रदेशों से प्रवासी पक्षियों ने हरिद्वार के गंगा किनारों में अपना डेरा डाल लिया है।
गुरुकुल कांगड़ी (समविश्वविद्यालय) के जाने माने पक्षी वैज्ञानिक व जन्तु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो0 दिनेश चन्द्र भट्ट ने बताया कि गंगा घाटी हरिद्वार के अनेको क्षेत्र-भीमगोडा वैराज़, मिश्रपुर गंगा घाट, राजाजी नेशनल पार्क इत्यादि आजकल विदेशी मेहमान पक्षियों के कलरव से गंुजायमान हैं। लगभग 27 प्रजातियाँ दूर देश से व 30 प्रजातियाॅ हिमालयी क्षेत्रों से शीत प्रवास पर आ चुकी हैं। मस्तिक के हाइपोथेलेमस में लगी जैविक घड़़ी इनको प्रवास के लिये आने हेतु आन्तरिक प्रेरणा देती है।
प्रो0 दिनेश चन्द्र भट्ट की लैब की रिर्पोट के अनुसार इसमें विलुप्त होने के कगार पर खड़ी आठ प्रजातियाँ जैसे: पलाश फिस ईगल, ओरियेन्टल डार्टर, रिवर लैपविंग, ब्लैक नैक्ड स्टोर्क, पेन्टेड स्टोर्क, बुली नैक्ड स्टोर्क, इन्डियन रिवर टर्न, ब्लैक हैडेड आइविस सामिल हैं। शोध छात्रा पारूल व रेखा ने बताया कि ब्लैक वैलिड टर्न, ब्लैक स्टोर्क, बुली नैक्ड स्टोर्क, नार्दन लैपविंग, येलो विर्टन कई वर्षों के बाद गंगा घाटी में देखे गये हैं।
प्रो0 दिनेश चन्द्र भट्ट के लैब में शोधार्थी पारूल एवं आशीष के अनुसार ब्लैक वैलिड टर्न तो प्रथम बार हरिद्वार क्षेत्र में रिर्पोट हुयी है। उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पक्षी वैज्ञानिक डाॅ0 विनय सैठी ने बताया कि भारतीय उप महाद्वीप में सायबेरिया, मंगोलिया एवं चीन से आते-जाते ये जलीय पक्षी 2-4 स्थलों पर रूक कर खाध रूपी ईंधन भरते हैं और फिर कई दिन बिना खाये-पिये लगातार यात्रा करते हैं। इनकी चोंच पर मैगनेटिक सेंसर लगा रहता है जिसका हाल ही के अध्ययन में पता लगा। इससे पक्षी दिशा बोध कर पाता है। भारत में आने वाले पक्षीयों का एक विशेष मार्ग जिसे ‘सेन्ट्रल फ्लाई वे’ कहते है, उसी हवाई मार्ग को पार करते हुये पक्षी पहुँचते है।

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