हरिद्वार लोकसभा चुनाव के नतीजों ने हरिद्वार में नए राजनीतिक समीकरणों को जन्म दिया है। जहां एक ओर हरीश रावत अपने आखिरी चुनाव में भी हार गए हैं। वहीं खुद को मुसलमानों का नेता बताने वाले बसपा विधायक मौहम्मद शहजाद भी अपने दावों और उमेश कुमार को लेकर उनकी जिद पर खरा नहीं उतर पाए। वहीं खानुपर से निर्दलीय विधायक उमेश कुमार भले ही चुनाव हार गए हो लेकिन जिस तरह उन्हें सभी 14 विधानसभा सीटों पर वोट मिला है, उससे साफ है कि उनके पास हर जगह समर्थक है। यही नहीं वो बसपा को भी चौथे नंबर पर धकेलने में कामयाब हो गए।
क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार अवनीश प्रेमी बताते हैं कि हरीश रावत ने पूरे चुनाव प्रचार में जनता को इमोशनली प्रभावित करने का प्रयास किया और कहा कि ये उनका आखिरी चुनाव है। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद वो पर्वतीय बाहुल्य वाली सीटों पर वोट प्राप्त नहीं कर पाए। धर्मपुर, डोईवाला, ऋषिकेश, हरिद्वार व रानीपुर विधानसभा में वो बुरी तरह हारे। ये साफ हो गया कि हरीश रावत का हरिद्वार से कुछ होने वाला नहीं है। वहीं दूसरी ओर शहजाद भी बसपा के मौलाना जमील अहमद को लेकर बड़े बडे दाव कर रहे थे।
लेकिन बसपा का मुस्लिम उम्मीदवार आना कहीं ना कहीं मुसलमानों और दलित वोटरों पर उल्टा काम कर गया। चुनाव के दौरान ये चर्चा तेज हो गई कि मौलाना साहब को भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए लाया गया है और इसमें शहजाद की भी भूमिका है। इसके चलते मौलाना जमील अहमद पचास हजार का आंकड़ा भी नहीं छू पाए।
उमेश कुमार बने उम्मीद
वरिष्ठ पत्रकार रतनमणी डोभाल बताते हैं कि उमेश कुमार के प्रदर्शन को अच्छा ही कहा जाएगा। ये भी नहीं है कि उन्हें सिर्फ मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में वोट मिले। बल्कि उनके हर विधानसभा में वोट मिला है। इससे साफ है कि उनके समर्थक सभी वर्गों में हो और अगर उन्हें पार्टी से टिकट मिलता तो शायद हरिद्वार का परिणाम कुछ ओर ही होता। चूंकि कांग्रेस के विधायकों में उतना दम दिख नहीं रहा है। ऐसे में उमेश कुमार हरिद्वार की राजनीति में नए विकल्प के तौर पर उभर कर आए हैं।
शहजाद की जिद भी हारी
वरिष्ठ पत्रकार करण खुराना बताते हैं कि चुनाव से पहले बसपा के शहजाद और उमेश कुमार के बीच तीखा विवाद हुआ था। इस विवाद के चलते शहजाद ने उमेश कुमार को चुनौती दे दी थी कि उन्हें यहां से कोई जनसमर्थन नहीं मिलेगा। लेकिन चुनाव में उमेश कुमार बसपा से दोगुना वोट ले आए। इससे साफ है कि शहजाद उमेश कुमार को बसपा से आगे निकलने में नहीं रोक पाए।
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