elections 2019 dr ramesh pokhriyal nishank bjp candidate from haridwar

पत्रकार से नेता बने निशंक जिन्होंने हरिद्वार को उत्तराखण्ड में मिलवाया

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चंद्रशेखर जोशी।
अलग उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर चले आंदोलन और राज्य आंदोलनकारियों के दिए गए बलिदान के बाद ये उत्तराखण्ड राज्य का बनना लगभग तय हो गया था। इधर, हरिद्वार को उत्तराखण्ड में शामिल ना किए जाने का स्थानीय स्तर पर आंदोलन चल रहा था। भारतीय किसान यूनियन और समाजवादी पार्टी के अलावा कई दूसरे संगठन इस मांग को हवा दे रहे थे। तब डा. रमेश पोखरियाल निशंक उत्तर प्रदेश विधानसभा का हिस्सा थे और कैबिनेट मंत्री भी थे।
इधर, हरिद्वार के संस्कृत विद्यालय निर्धन निकेतन और चेतन ज्योति में पढ चुके डा. निशंक हरिद्वार को उत्तराखण्ड में शामिल करने को लेकर अपने कुछ साथियों के साथ काम कर रहे थे। उस दौरान उनके बेहद करीबी रहे हरिद्वार के वरिष्ठ पत्रकार गोपाल रावत बताते हैं कि हरिद्वार को उत्तराखण्ड में शामिल किए जाने को लेकर डा. निशंक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके लिए काफी प्रयास हरिद्वार से किए गए। डा. निशंक के अलावा इसमें कांग्रेस नेता पुरुषोत्तम शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार सुनील दत्त पाण्डेय और खुद उन्होंने प्रयास किए। वरिष्ठ पत्रकार सुनील दत्त पाण्डये बताते हैं कि डा. निशंक अकेले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने यूपी मंत्रीमंडल और विधानसभा में पूरे हरिद्वार को उत्तराखण्ड में शामिल करने के लिए पुरजोर तरीके से अपनी बात रखी। यही नहीं निशंक ने उस दौरान देहात क्षेत्रों का दौरा किया और राज्य सरकार व केंद्र सरकार के समक्ष अपनी बातें रखी। तब यूपी विधानसभा ने हरिद्वार को बाहर रखने पर सहमति जताई थी लेकिन केंद्र सरकार के समक्ष डा. निशंक ने प्रयास किए और आखिरकार उनके प्रयासों से हरिद्वार उत्तराखण्ड में शामिल हो पाया।
स्थानीय और बाहरी के मुद्दे पर गोपाल रावत बताते हैं कि इस मामले को लेकर कई बार हरिद्वार की जनता को गुमराह करने का प्रयास किया गया लेकिन कभी इसमें सफलता नहीं मिल पाई। डा. निशंक तो हरिद्वार में पले बढे हैं। उन्होंने बताया कि डा. रमेश पोखरियाल निशंक राजनीति  में आने से पहले पत्रकार बन चुके थे सीमांत वार्ता नाम से निशंक ने अपना अखबार निकाला और बाद में शिक्षक से होते हुए राजनीति में आ गए। संघ से जुडे होने के कारण उन्हें 1991 में भाजपा ने कर्णप्रयाग से टिकट दे दिया और वो उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंच गए। 1993 और 1996 में निशंक विधानसभा पहुंचे। निशंक कल्याण सिंह सरकार में उत्तराचंल विकास मंत्री बने और 1999 में यूपी की राम प्रकाश गुप्ता सरकार में भी मंत्री थी। यही नहीं 2000 में अलग उत्तराखण्ड बनने के बाद डा. निंशक फिर से 12 विभागों के संभालने वाले मंत्री बने। 2009 से 2011 तक वो उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री भी रहे। लेकिन बाद में उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था।
2014 में मोदी लहर के बलबूते वो हरिद्वार लोकसभा सीट से जीतने में कामयाब रहे और इस बार भी भाजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है। उनके सामने हरिद्वार के स्थानीय हितों की बात करने वाले पूर्व विधायक अंबरीष कुमार हैं। वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि डोभाल बताते हैं कि डा. निशंक को राजनीति का अच्छा खासा अनुभव है और उन्हें सरकार में काम करने का भी तर्जुबा है। लेकिन सांसद रहते हुए उनके कार्यकाल को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। आलम ये है कि डा. निशंक अगर अपनी छवि पर चुनाव लडे तो उनको पसीने छूट जाएंगे। जनता को जो उम्मीदें उनसे थे मुझे लगता है वो उन पर खरा नहीं उतर पाए हैं। ​बहरहाल, पीएम नरेंद्र मोदी की कथित लहर के बलबूते डा. निशंक इस बार भी मैदान में है।

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