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शहर के मध्य में हुए कब्जे में क्या खामोश में आला अफसर, शिकायत के बाद भी कोई सुनवाई नहीं

कुणाल दरगन।
छोटे-छोटे मुद्दे को लेकर बेहद संवेदनशील दिखाई देने वाले जिले के दोनों शीर्ष अफसर आखिर 10 करोड़ से अधिक की कीमत वाले भूखंड पर हुए अवैध कब्जे को लेकर क्यों चुप्पी साधे हुए हैं, इसे लेकर सवाल खड़े होना लाजमी है। दबंग शहर के बीचो बीच दबंगई दिखाते हुए बेशकीमती भूखंड पर दीवार तक खड़ी कर देते हैं लेकिन इसके बावजूद भी जिला प्रशासन और पुलिस महकमे के कान पर जूं तक नहीं रेंगती है। यह सवाल हैरान कर देने वाला ही है। उधर देहरादून में बैठे आला अफसर भी इस अवैध कब्जे को लेकर खामोशी बनाए हुए है।
शहर के बीच में 10 करोड़ से अधिक की संपत्ति पर हुए अवैध कब्जे का मामला इन दोनों सुर्खियों में है ।गौर करने वाली बात यह है कि इस जमीन को लेकर विवाद की स्थिति बनी हुई है लेकिन इसी बीच कुछ गुंडा तत्व इस जमीन पर दीवार खड़ी कर देते हैं। जमीन को लेकर जब विवाद की तस्वीर नहीं सुलझ पाई है तो ऐसे में जमीन पर कब्जा होना सीधे-सीधे गलत है ।
बताया जाता है कि इस जमीन पर तीन पक्ष अपने स्वामित्व का दावा करते हैं इसलिए ही इस भूखंड का विवाद अब तक नहीं सुलझ सका है,क्योंकि कब्जा अभी तक किसी का नही था। जमीन पर कब्जा करने वाले गुंडा तत्व मे हरिद्वार पुलिस और जिला प्रशासन का बिल्कुल भी खौफ नहीं है । इसकी बानगी उस समय देखने को मिली जब दिन में ही अवैध कब्जे का दुस्साहस करते हुए दीवार तक खड़ी कर दी गई ।बकायदा एक गेट भी उस विवादित भूखंड में लगा दिया गया। जिले के शीर्ष अफसर डीएम और एसएसपी वैसे तो छोटे-छोटे मसले को लेकर सजग रहते हैं लेकिन करोड़ों के भूखंड पर हुए अवैध कब्जे को लेकर आखिर दोनों क्यों नजरअंदाज किए हुए हैं। यह अपने आप में हैरान करने वाली ही बात है। आखिर क्या वजह है जो जिला प्रशासन और पुलिस महकमा अवैध कब्जे पर करो कार्रवाई करने से पीछे हट रहा है।

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शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं
विवादित भूमि पर कार्रवाई बड़ी आसानी से की जा सकती है । अब इस विवादित भूमि को लेकर दो पक्ष कोतवाली ज्वालापुर में अपनी शिकायत लिखित में भी दे चुके हैं यदि पुलिस चाहे तो सीआरपीसी की धारा 145 के तहत इस विवादित की इस विवादित भूमि को कुर्क करने की रिपोर्ट सिटी मजिस्ट्रेट को भेज सकती है ।सिटी मजिस्ट्रेट पुलिस की रिपोर्ट को सीन कर सीआरपीसी की धारा 146 के तहत कुर्क करने की करवाई करते हुए रिसीवर की तैनाती कर सकता है ।इसके बाद सिटी मजिस्ट्रेट की कोर्ट में भूमि से जुड़े सभी पक्ष अपना अपना दावा पेश करेंगे ,जिसके जिस पार्टी के भी दस्तावेज सही पाए जाएंगे उसी के हक में सिटी मजिस्ट्रेट कोर्ट का फैसला आएगा। लेकिन अभी तक 145 तक की कार्रवाई ना होना भी सवाल खड़े कर रही है।

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दस्तावेजों में भी हुआ खेल
10 करोड़ से अधिक के इस भूखंड के इस खेल में राजस्व विभाग के भी कुछ शातिर शामिल हैं ।राजस्व दस्तावेजों में खेल होने की बात कोई नई नहीं है ।राजस्व कर्मचारी इस खेल में महारथ रखते हैं ।सरकारी पन्ने मैं अपनी कलम से किसके हक में क्या उकेरना है। यह राजस्व कर्मियों से ज्यादा अच्छा कोई नहीं जानता है ।जिलाधिकारी श्री रविशंकर जब इस पहलू पर भी जांच कराएंगे तो करें राजस्व कर्मियों के चेहरे इस खेल में रंगे हुए मिलेंगे।

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