विकास कुमार।
कई सरकारी कंपनियों के निजीकरण के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की महारत्न कंपनी बीएचईएल के बिकने की संभावना भी प्रबल होती जा रही है। बीएचईएल के पास काम नहीं है और श्रमिकों से कई तरह की कटौती भी की जा चुकी है। उधर, बीएचईएल की तमाम यूनिटों की कीमत करीब पचास हजार करोड रुपए आंकी गई है। भेल के श्रमिकों का कहना है जिस तरह के बीएचईएल के हालात हैं, उससे लगता है कि जल्द ही इसके बिकने का नंबर आ जाएगा। बहुत ज्यादा उम्मीद है 2022 तक बीएचईएल का निजीकरण हो जाएगा। बीएचईएल को खरीदने में अडानी और टाटा दोनों ही समूह लगे हैं।
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क्या कहते हैं श्रमिक नेता
भेल हरिद्वार यूनिट के श्रमिक नेता मनमोहन कुमार ने बताया कि मार्च 2021 में ही सरकार ने बीएचईएल की कुल वेल्यू निकाल आंकी थी, इसके अनुसार प्लांट, जमीन और अन्य साजोसामान की कीमत पचास हजार करोड रुपए आंकी गई थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि बीएचईएल के जैसे हालात चल रहे हैं, कभी भी ये बिक सकती है। हालांकि श्रमिक यूनियनें इसका विरोध करेंगी। लेकिन ये भी सही है कि बंद होने से बेहतर है कि कंपनी को कोई और खरीद ले ताकि आईडीपीएल की तरह हाल ना हो जाए। उन्होंने बताया कि सरकार की गलत नीतियां और सरकारी उपक्रमों को सहयोग ना करने के कारण ही बीएचईएल का ये हाल हुआ है। उन्होंने कहा कि अडानी और टाटा बीएचईएल को खरीदने में सबसे आगे हैं और श्रमिकों का मत है कि अडानी के बजाए टाटा समूह अगर बीएचईएल को खरीदता है तो श्रमिकों के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होगा। भेल श्रमिक नेता राम कुमार और केडी गुंसाई ने भी मानते हैं कि बीएचईएल का नंबर कभी भी आ सकता है। अभी भी अधिकतर कर्मचारी ठेकेदारी प्रथा में काम कर रहे हैं। कर्मचारियों के पास काम नहीं है। कंपनी का निजीकरण होता है कि इसका सीधा असर श्रमिकों पर पडेगा।
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नहीं बिकने देंगे आखिरी तक संघर्ष करेंगे
वहीं श्रमिक नेता राजबीर सिंह चौहान ने बताया कि बीएचईएल को किसी भी कीमत पर बिकने नहीं दिया जाएगा। बीएचईएल के हालात सही नहीं है लेकिन बीएचईएल का प्रबंधन और श्रमिक सभी इसके निजीकरण के खिलाफ हैं और हम आखिरी दम तक सरकार के खिलाफ संघर्ष करेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार एक प्लानिंग के तहत सरकारी कंपनियों को बेचने का काम कर रही है और सीधे तौर पर अपने करीबी उद्योगपतियों को ही फायदा पहुंचा रही है। उन्होंने कहा कि बीएचईएल के लिए हम संघर्ष कर रहे हैं और अगे भी करते रहेंगे।
इस तरहके बयान से Aituc के अध्यक्ष मनमोहन जी का वैचारिक और मानसिक दिवालियापन साफ दिखाई दे रहा है। मजदूरों को आज सही राह दिखाने की जरूरत और ये नेताजी मजदूरों को गुमराह कर भ्रमित करने में लगे हैं।
“दिन हवा ना पत्ता हिलता है बिन लड़े ना कुछ भी मिलता है”
अतः साथियों को लड़ना होगा और तभी हम अपने हक अधिकारों को, अपनी BHEL को, अपने रोजगार को बचा सकते हैं। मनमोहन जैसे नेताओं की बातों को ज्यादा गंभीरता से नहीं ले मजदूर।
इंकलाब जिंदाबाद