विकास कुमार।
कुंभ कोरोना टेस्टिंग घोटाला उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार के लिए बडा कलंक बनकर सामने आया है। लेकिन क्या इस घोटाले को रोका जा सकता था। क्या अधिकारियों को इसका पता लग गया था और क्या समय रहते इस पर कार्रवाई हो सकती थी। सवाल ये भी है कि कुंभ में कोरोना कंट्रोल की जिम्मेदारी संभाल रहे जिले के अधिकारी क्या कर रहे थे और क्यों पंजाब के एक एलआईसी एजेंट की शिकायत के बाद देहरादून से जांच के बाद कार्रवाई हुई। अगर ये घोटाला सामने ना आता तो अभी तक मैक्स को फर्जी टेस्टिंग के बिलों का करोडों रुपए भुगतान भी कर दिया गया होता।
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कोरोना से निगेटिव आंकडों से अपनी वाहवाही करते रहे जिले के अधिकारी
वरिष्ठ पत्रकार अवनीश प्रेमी ने बताया कि कुंभ मेला में कोरोना टेस्टिंग की जिम्मेदारी मेला प्रशासन और जिला प्रशासन के अधिकारियों की संयुक्त रूप से बनती है। जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के पास कुंभ की रिपोर्टिंग के सभी डाटा मिल रहे थे। लेकिन, दोनों ही विभाग के अधिकारियों ने इतने बडे पैमाने पर आ रही निगेटिव रिपोर्ट पर कभी गौर नहीं किया। अगर वो इस डाटा को गंभीरता से लेते तो शायद इस घोटाले को रोका जा सकता था। लेकिन इस पर अफसरों का ध्यान नहीं गया और नतीजा कुंभ घोटाले के तौर पर सबके सामने हैं। उनहोंने बताया कि अफसरों की लापरवाही से सरकार की किरकिरी हुई है। वहीं वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि डोभाल बताते हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि मैक्स को कोरोना टेस्टिंग का ठेका देने वाले जितने जिम्मेदार है उतने ही जिम्मेदार हरिद्वार प्रशासन के अफसर भी हैं। लेकिन तब ये निगेटिव डाटा को अपने लिए प्रयोग कर रहे थे। जिलाधिकारी सी रविशंकर और सीएमओ हरिद्वर डा. एसके झा हमेशा ये ही कहते रहे कि हरिद्वार में कोरोना के हालात अच्छे हैं और पूरे राज्य में सबसे कम ज्यादा टेस्टिंग के बाद भी सबसे कम केस आ रहे हैं। अगर तब आंकडों से साथ खेलने के बजाए रिपोर्ट की सच्चाई पर ध्यान दिया गया होता तो ये घोटाला नहीं होता।
वरिष्ठ पत्रकार कुणाल दरगन बताते हैं कि जिले के अधिकारियों की जवाबदेही तय होनी चााहिए। दोनों अधिकारी हमेशा दावा करते रहे कि हमने सबसे ज्यादा टेस्टिंग की और सबसे कम केस हरिद्वार मे हैं। इन आंकडों के जरिए डीएम और सीएमओ अपनी वाहवाही करते थे। यही नहीं जब सीएम तीरथ सिंह रावत हरिद्वार आए और उनके सामने भी डीएम हरिद्वार ने यही कहा कि हमने करीब 15 लाख टेस्ट किए और पूरे राज्य में हमारा पाजिटिविटी रेट सबसे कम रहा। इस पर सीएम ने ही जिले के अधिकारियों की खूब प्रशंसा की। लेकिन किसी ने आंकडों की बाजीगिरी के पीछे का सच जानने की कोशिश नहीं की अगर करते तो मैक्स का खेल पहले ही पकड में आ चुका होता और सरकार की किरकिरी भी ना होती।
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जिम्मेदारी अधिकारियों को हटाए बिना निष्पक्ष जांच संभव नहीं
वहीं वरिष्ठ पत्रकार अवनीश प्रेमी ने बताया कि जब तक जिम्मेदार अधिकारियों को हटाया नहीं जाता तब तक इस घोटाले की निष्पक्ष जांच संभव नहीं है। वहीं प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार सुभाष शर्मा ने भी आरोप लगाया कि दस्तावेजों के साथ छेडछाड की जा रही है। वरिष्ठ पत्रकार कुणाल दरगन भी बताते हैं कि जिम्मेदार अधिकारियों को हटाया जाना जरुरी था ताकि एसआईटी दस्तावेज आसानी से जांच कर सकती। क्योंकि धोखाधडी के मामलों में दस्तावेजी साक्ष्य महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
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