रतनमणी डोभाल। केंद्र सरकार के एक आदेश के बाद ऐलोपैथिक यानी अंग्रेजी पद्धति से इलाज करने वाले डाॅक्टर और आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज कराने वाले डाॅक्टरों के बीच विवाद हो गया है। विवाद भी इतना बड़ा कि अंग्रेजी डाॅक्टर यानी एमबीबीएस डाॅक्टरों ने शुक्रवार को सामूहिक हड़ताल कर दी, वहीं आयुर्वेदिक डाॅक्टरों यानी बीएएमएस डाॅक्टरों ने हड़ताल के विरोध में फ्री में मरीजों का इलाज किया। आलम ये है कि दोनों पक्षों में जुबानी जंग तेज हो गई और दोनों ओर के डाॅक्टर एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। लेकिन इन दोनों के विवाद में मरीजों का क्या होगा केंद्र सरकार का ये आदेश मरीजों को कितना प्रभावित करेगा, आइये जानते हैं। —- क्या है केंद्र का आदेश
असल में सरकार ने आयुर्वेदिक डाॅक्टरों को सर्जरी करने की अनुमति दे दी है। गुुरूकुल कांगडी आयुर्वेदिक काॅलेज के प्रोफेसर डा. उदय पांडे ने बताया कि सरकार का ये आदेश आयुर्वेद चिकित्सकों के लिए संजीवनी से कम नहीं है। क्योंकि सर्जरी का उल्लेख सबसे पहले आयुर्वेद में ही है और आयुर्वेद डाॅक्टर सर्जरी करते आए हैं। केंद्र ने जनरल सर्जरी की अनुमति दी है इसमें पचास से अधिक प्रकार की सर्जरी अब आयुर्वेदिक डाॅक्टर एमएस करने के बाद कर सकते हैं। चूंकि इससे एमबीबीएस डाॅक्टरों की मनमानी पर रोक लगेगी इसलिए ये विरोध हो रहा है। —- क्या कहते हैं एमबीबीएस डाॅक्टर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने शुक्रवार को हडताल की और सरकार के इस आदेश को मरीजों के साथ धोखा बताया। आईएमए हरिद्वार के पूर्व अध्यक्ष और जाने वाले ईएनटी स्पेशलिस्ट डा. जसप्रीत सिंह ने बताया कि हमें आयुर्वेदिक डाॅक्टरों के सर्जरी करने से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन वो जिस पद्धति से करेंगे वो स्पष्ट होनी चाहिए। आयुर्वेदिक पद्धति से ही सर्जरी करें और ये बात मरीजों केा भी स्पष्ट रूप से बताए। लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है जो सिर्फ सर्जरी तक ही सीमित नहीं रहता है। असल में सर्जरी करते वक्त कई तरह के काॅम्लीकेशन होते हैं जिसे अच्छी तरह डाॅक्टरी की तालीम हासिल करने के बाद अनुभव से आता है और इसमें एमबीबीएस के बाद एमएस और उसके बाद भी कई तरह की परीक्षा पास करने में लंबा समय लगता है। हमारा कहना सिर्फ इतना है कि सर्जरी के नाम पर मरीजों की जान से खिलवाड़ ना किया जाए। आयुर्वेदिक डाॅक्टरों को सर्जरी करने से मरीजों के हित प्रभावित होंगे और उनकी जान पर बन आएगी। उन्होंने कहा कि इस मसले पर सरकार को कोई भी फैसला लेने से पहले आईएमए को विश्वास में लेना चाहिए था, साथ ही मरीजों के हितों को भी ध्यान में रखना चाहिए था।
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वहीं शहर के सिटी अस्पताल के प्