विकास कुमार/अतीक साबरी/ऋषभ चौहान।
उत्तराखण्ड में कांग्रेस की लाज बचाने में दलित और मुस्लिम मतदाताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, बावजूद इसके हरीश रावत सहित उत्तराखण्ड कांग्रेस के बडे नेता दलितों की अनदेखी कर रहे हैं। हालांकि अनदेखी मुस्लिम वोटरों की भी हो रही है लेकिन मुसलमानों में आवाज उठाने वाला कोई नहीं है लेकिन दलित अपने साथ हो रहे दोहरे रवैये को लेकर खुलकर बोल रहे हैं और अपना विरोध भी दर्ज करा रहे हैं। दलितों की ताजा नाराजगी बाबू जगजीवन राम की उपेक्षा को लेकर है। स्वतंत्रता आंदोलनकारी बाबू जगजीवन राम नेहरु कैबिनेट के सबसे युवा मंत्री होने साथ—साथ कांग्रेस के अध्यक्ष और सबसे ज्यादा लंबे समय तक मंत्री रहने वाले कांग्रेसी बने। बावजूद इसके उत्तराखण्ड कांग्रेस के किसी नेता ने बाबू जगजीवन राम को उनकी जयंती पांच अप्रैल को याद नहीं किया। Dalit leaders of congress are angry of Harish rawat and other congress leaders
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हरीश रावत को नींबू—ककड़ी याद रहती है लेकिन बाबू जगजीवन याद नही
कांग्रेस के बडे दलित नेता तीरथ पाल रवि ने बताया कि उत्तराखण्ड कांग्रेस या फिर हरिद्वार कांग्रेस के किसी भी नेता ने बाबू जगजीवन राम को याद नहीं किया जबकि वो बडे दलित नेता थे और कांग्रेस को मजबूत करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। हरीश रावत हो या फिर प्रीतम सिंह या फिर किसी भी दूसरे नेता केा कांग्रेस के इतने बडे नेता की याद नहीं है, ऐसे में कांग्रेस कैसे मजबूत होगी। ये आलम तब है जबकि हरिद्वार और उधम सिंह नगर की दस सीटों को जीतने में दलितों और मुस्लिमों ने अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत हरिद्वार ग्रामीण से दलित और मुसिलम वोटों से ही जीती है। अगर ये ही हाल रहा तो कांग्रेस कैसे खडी होगी। वहीं एक दूसरे दलित नेता ने बताया कि हरीश रावत को नींबू पाटी और ककडी पार्टी का ख्याल रहता है लेकिन दलितों के महापुरुषों का ध्यान नहीं रहता है। इन्हें सिर्फ वोट चाहिए और कुछ नहीं। चुनाव हारते अपनी गुटबाजी के कारण हैं और ठीकरा किसी ओर के सिर फोड देते हैं। यही हालात रहे तो दलितों को भी विकल्प तलाशने के बारे में सोचना होगा। आगे से फिर 19 सीटें भी नहीं आएंगी।
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