हाजी सरवत करीम अंसारी
रतनमणी डोभाल।
हरिद्वार के मुस्लिम बाहुल्य इलाके मंगलौर की सियासत में काजी परिवार का हमेशा से अलग रुतबा रहा। लेकिन दो बार ऐसा हुआ जब काजी के इस गढ़ को हाजी सरवत करीम अंसारी ने फतह किया। हालांकि कम संख्या में होने के बाद भी काजी हमेशा मंगलौर के सर्वसमाज की पहली पसंद रहे।
लेकिन 2012 और 2022 में हाजी सरवत करीम अंसारी ने मंगलौर से विधायक बन साबित किया कि काजियों की सियासत का भी विकल्प हो सकता है। हाजी सरवत करीम अंसारी का देहांत मंगलौर के पसमांदा मुसलमानों की सियासत को बडा झटका है जिसकी भरपाई शायद ही कोई कर सकता है।
काजी पर भारी कैसे रहे हाजी सरवत करीम अंसारी
वरिष्ठ पत्रकार आरिफ नियाजी बताते हैं कि काजी मोइनुद्दीन साहब के दौर तक किसी ने सोचा भी नहीं था कि मंगलौर में काजियों का कोई विकल्प भी हो सकता है। लेकिन काजी निजामुद्दीन नए दौर के नेता है और वो मंगलौर की बदलती सियासत में खुद को एडजस्ट करने में थोडा असफल रहे।
यही कारण था कि 2012 में सरवत करीम अंसारी ने उन्हें हरा दिया। वहीं 2017 में भी मुकाबला कडा रहा लेकिन इस बार काजी निजामुद्दीन चुनाव जीत गए।
लेकिन एक बार फिर 2022 में सरवत करीम अंसारी फिर विजेता बनकर सामने आए। तीनों ही बार हाजी सरवत करीम अंसारी लगातार मजबूत होकर निकले और इसका कारण था कि सरवत करीम अंसारी मंगलौर के दूसरे नेताओं के मुकाबले जनता को ज्यादा समय देते थे।
वो अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों के लिए लडते थे और उनके दुख सुख में खडे रहते थे। उनका आम स्वभाव और सालों की राजनीति का तर्जुबा उनके व्यवहार में झलकता भी था। जिसका फायदा उन्हें मिलता रहा। यही कारण है कि काजी पर हाजी भारी पडते रहे।
अब कौन होगा उत्तराधिकारी
हाजी सरवत करीम अंसारी का सियासी बैकग्राउंड रहा है। उनके पूर्वज भी मंगलौर की नुमाइदंगी कर चुके हैं। अपने बडों की तरह ही हाजी सरवत करीम अंसारी ने सियासत को आगे बढाया लेकिन सवाल ये है कि अब उनके बाद इस सियासत का उत्तराधिकारी कौन होगा। वरिष्ठ पत्रकार आरिफ नियाजी बताते हैं कि उनके तीन बेटे हैं। बडे बेटे वकालत पेशे से जुडे हैं जबकि बाकी दो बेटे पिता की तरह ही राजनीति में सक्रिय हैं।
हालांकि हाजी सरवत करीम अंसारी का उत्तराधिकारी चुनना आसान नही होगा। क्योंकि जो कूवत और रहनुमाई की समझ हाजी सरवत करीम अंसारी में थी उसे पाने के लिए सालों का तर्जुबा चाहिए होता है। सवाल ये भी है कि उत्तराधिकारी को लेकर एक राय बन भी गई तो क्या वो अपनी सत्ता बरकरार रख पाने में कामयाब हो पाएगा। फिलहाल, मंगलौर के पसमांदा और पिछडे मुलसमानों का एक रहबर चला गया है जिसकी भरपाई करना आसान नहीं होगा।
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