विकास कुमार।
कंगाली के दौर से गुजर रही महारत्न कंपनी भेल में श्रमिक यूनियनों के मान्यता के चुनाव 23 जून को होने हैं लेकिन हर बार की तरह इस बार भी चुनाव में श्रमिक मुद्दों के बजाए नाइट पार्टियां भारी पड रही है। चुनाव में करीब 11 यूनियन मैदान में हैं और सभी अपनी जेब के हिसाब से श्रमिकों को लुभाने का प्रयास कर रही हैं लेकिन इस मुर्गा—दारु पार्टी में कभी विधायक चच्चा थे हमारे और अगर यूं होता तो इस बार विधायक चच्चा होते हमारे वाले कथित गांधीवादी नेताओं की यूनियनें पार्टी देने में अव्वल साबित हो रही हैं। चुनाव जीतने के लिए जमकर पैसा बहाया जा रहा है। वहीं श्रमिक नेताओं ने इन night पार्टियों पर सवाल खडे करते हुए आरोप लगाया कि ये एक तरीके से वोट खरीदना हो गया है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि श्रमिक अपने हितों को त्याग कर इन नेताओं की मुर्गा पार्टी में जा रहे हैं।
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चुनाव में पार्टी के अलावा जातिवाद और क्षेत्रवाद भी हावी
भेल में करीब ढाई हजार के करीब श्रमिकों के वोट हैं और यहां कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक रामयश की हैवी इलैक्ट्रिकल्स वर्कर्स ट्रेड यूनियन, कांग्रेस नेता राजबीर सिंह इंटक से जुडी भेल मजदूर कल्याण परिषद, एचएमएस, सीटू—एटक भी है तो दलित श्रमिक भेल श्रमिक यूनियन के बैनर तले लड रहे हैं। इसमें पूर्व विधायक रामयश पूर्वांचल समुदाय के वोटरों को साधे हुए हैं। वहीं विधानसभा चुनाव में राजबीर सिंह के खिलाफ भाजपा प्रत्याशी को समर्थन करने पर इस बार रामयश की यूनियन को भाजपा विधायक गुट का भी समर्थन मिला हुआ है। वहीं भेल मजदूर कल्याण परिषद चौहान वोट बैंक के अलावा पर्वतीय समुदाय के वोट बैंक को साधने का प्रयास कर रही है। वहीं, लेफ्ट सोच वाले सीटू—एटक के लाल झंडे को थामे हुए हैं।
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श्रमिकों ने धनबल पर ऐतराज जताया
भेल श्रमिक सुभाष पुरोहित ने बताया कि चुनाव पूरी तरीके से मुद्दाविहीन हो रहे हैं। श्रमिकों के हितों को उठाने के बजाए कई यूनियन मुर्गा—शराब की पार्टियों पर फोकस कर श्रमिकों को लुभा रही हैं। जबकि भेल श्रमिकों के सामने कई मुद्दे हैं। इनके कई तरह के भत्ते खत्म कर दिए गए हैं। भेल के पास काम नहींं है और इस असर श्रमिकों पर पड रहा है। श्रमिकों को अपनी आवाज उठाने वाली यूनियन को चुनना चाहिए। वहीं लेफ्ट नेता मुनिरका यादव ने बताया कि हमारा सिस्टम खराब हो चुका है। जिसमें वोटरों ही नहीं विधायकों—सांसदों को खरीदने का काम किया जा रहा है। ऐसे में भेल श्रमिक चुनाव भी इससे पीछे नहीं है। लेकिन श्रमिकों को सोचना चाहिए कि जो पार्टी देकर चुनाव जीतेंगे वो कैसे उनका भला कर सकते हैं।
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