रतनमणी डोभाल/हरीश कुमार।
हाल ही में सीएम तीरथ सिंह रावत की समीक्षा बैठक में जिलाधिकारी सी रविशंकर ने कोविड की तैयारियों का प्रेजेंटेशन देते हुए कहा कि हमारे पास पर्याप्त वेंटिलेंटर है लेकिन प्रशिक्षित स्टाफ ना होने के कारण वो वेंटिलेटर का प्रयोग नहीं कर सके, लेकिन अब एम्स ऋशिकेष के जरिए स्टॉफ को ट्रेनेड किया जा रहा है। एक टीम ट्रेनिंग लेकर आ चुकी है और अन्य कर्मचारियों को भी ट्रेनिंग दिलाई जाएगी।
यहां सवाल ये उठता है कि पहली लहर के बाद ये तय था कि दूसरी लहर आनी है और कुंभ मेला हरिद्वार में था जिसके जिए विशेष तैयारियां की गई थी और जनपद को राज्य व कुंभ मेला प्रशासन की ओर से कुल 82 वेंटिलेटर मिले तो फिर जिला प्रशासन वेंटिलेटर मिलने के बाद ही अपने मेडिकल स्टाफ को ट्रेनिंग दिलाने में चूक क्यों कर गया। क्या स्टाफ की कमी को समय रहते दूर कर हरिद्वार में लोगों की जान बचाई जा सकती थी। ये सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि क्योंकि हरिद्वार में बडे पैमाने पर लोगों की वेंटिलेटर की जरुरत थी। देहरादून के अस्पताल पहले से फुल होने के कारण वहां बैड नहीं मिल पा रहे थे और हरिद्वार में सरकारी अस्पतालों में 82 वेंटिलेटर होने के बाद भी इन मशीनों का प्रयोग करने को कोई तैयार नहीं था। जिसके कारण लोग इलाज के अभाव में दम तोड गए। संसाधन होने के बाद भी हुई मौतों के लिए कौन से अफसर जिम्मेदार हैं, क्या इन पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।
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किस अस्पताल को कितने वेंटिलेटर मिले
सीएमओ हरिद्वार कार्यालय के मुताबिक तीस वेंटिलेटर डीजी आफिस देहरादून से हरिद्वार भेजे गए थे। इनमें से दस मेला अस्पताल केा दिए गए। जबकि दस जया मैक्सवेल अस्पताल, पांच विनय विशाल और पांच सीएमओ देहरादून को भेज दिए गए थे। इसके अलावा कुंभ मेला स्वास्थ्य विभाग ने भी वेंटिलेटर जनपद को दिए थे। कुंभ मेला स्वास्थ्य अधिकारी डा. अर्जुन सिंह सेंगर ने बताया कि 22 वेंटिलेटर हमने बाबा बर्फानी अस्पताल को दिए थे। जबकि 20 वेंटिलेटर मेला अस्पताल को दिए गए और दस वेंटिलेटर बेस अस्पताल जिसे बाबा रामदेव और राज्य सरकार मिल कर चला रहे थे, उसे दिया गए थे। हालांकि स्वास्थ्य विभाग पूरे वेंटिलेटर का डाटा शेयर करने को राजी नहीं हुआ। लेकिन अभी तक मिली जानकारी के अनुसार 82 वेंटिलेटर दूसरी लहर से पहले हरिद्वार को मिल चुके थे। लेकिन, इन मशीनों का प्रयोग नहीं किया गया और जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग इनके प्रयोग करने पर भी सोता रहा।
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क्या स्टॉफ की कमी ही कारण था या वजह कुछ ओर थी
जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का दावा है कि वेंटिलेटर के लिए जिले के पास पर्याप्त प्रशिक्षित स्टॉफ नहीं था। सीएमओ डा. एसके झा ने बताया कि हमारे पास पर्याप्त स्टॉफ नहीं था और इस कारण वेंटिलेटर का प्रयोग नहीं हो पाया। लेकिन हमने अपने कई वेंटिलेटर निजी अस्पतालों को दिए, जिनका प्रयोग हो सका। लेकिन, सवाल ये भी है कि जब निजी अस्पताल पर्याप्त स्टाफ ना होने के बाद भी वेंटिलेटर चला सकते हैं तो सरकारी अस्पतालों में ऐसा क्यों हुआ। जबकि कुंभ मेला के लिए स्टॉफ हरिद्वार आया था। मेला स्वास्थ्य अधिकारी डा. अर्जुन सिंह सेंगर ने बतया कि हमको पौडी व अन्य जनपदों से ट्रेनेड स्टाफ मिला था और हमने तैनात भी किया था। इसके अलावा बेस अस्पताल के लिए श्रीनगर मेडिकल कॉलेज से भी स्टाफ आया था। जनपद के पास अपना भी स्टाफ था। लेकिन वेंटिलेटर क्यों नहीं चल पाए, ये जिला के अधिकारी भी बता सकते हैं। वहीं वरिष्ठ पत्रकार तनुज वालिया ने बताया कि जिले को दूसरी लहर से पहले ही वेंटिलेटर और दूसरे साजो समान मिल चुके थे। लेकिन स्वासथ्य विभाग प्रशिक्षित स्टाफ का रोना रोता रहा। अब जबकि ट्रेनिंग की बात की जा रही है तो ये पहले भी कराई जा सकती थी। इसमें जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग चूक कर गया, जिसके कारण लोगों को वेंटिलेटर के लिए निजी अस्पतालों का रुख करना पडा और अधिकतर ने इलाज के अभाव में दम तोड दिया। निश्चित तौर पर इसके लिए जिल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जिम्मेदार हैं।
मेला अस्पताल ने किया अच्छा प्रयास
वहीं दूसरी ओर जनपद के सरकारी अस्पतालों मेला अस्पताल ही एक ऐसा अस्पताल था जहां चार वेंटिलेटर चलाए गए। हालांकि जिले के अधिकारी सरकारी अस्पतालों में स्टॉफ की कमी की बात कहते रहे। लेकिन यहां किसी तरह इन मशीनों को चलाया जा रहा था। कई बार तो स्टाफ ने इंटरनेट पर जानकारी लेकर काम चलाया।
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Me ot technician hu vantitater bhe chlana bhe janta hu ager meri koi half ki jarorat h to me covid19 me aap ke sath hu