Uttarakhand Tunnel Rescue
रतनमणी डोभाल। Uttarakhand Tunnel Rescue
12 नवंबर को उत्तरकाशी की सिलक्यारा—बडकोट टनल में फंसे इकतालीस मजदूरों को बाहर निकालने में 17 दिन बाद मंगलवार को कामयाबी हाथ लगी। हालांकि पिछले शुक्रवार को 47 मीटर तक अंदर जाने के बाद अत्याधुनिक आगर मशीन के फंसने के कारण रेस्क्यू अभियान थम गया था और विशेषज्ञों ने प्लान बी के तहत टनल के उपर से वर्टिकल ड्रिलिंग का काम शुरु कर दिया था जो तेजी से आगे बढ रहा था। लेकिन मध्य प्रदेश से आए बेहद पेशेवर मजदूर जिन्हें रेट माइनर्स कहा जाता है उन्होंने 47 मीटर के बाद करीब 57 मीटर तक रास्ता साफ कर टनल के ब्रेकथू प्वाइंट को भेद दिया। Uttarakhand Tunnel Rescue
इसी के साथ सैकडों की संख्या में लगे श्रमिकों, सेना के जवानों और देश विदेश के विशेषज्ञों और श्रमिकों के लिए दुआएं कर रहे लोगों में खुशी की लहर दौड गई। वहीं श्रमिकों को निकालने के लिए काम शुरु कर दिया गया। इसके लिए टनल के अंदर ही एक अस्थायी अस्पताल बनाया गया था साथ्ज्ञ ही उत्तरकाशी के जिला अस्पताल में भी व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर मजदूरों को एयर लिफ्ट करने के भी मुकम्मल इंतजाम किए गए थे। Uttarakhand Tunnel Rescue
सिलकयारा टनल रेस्क्यू अभियान भारत के सबसे बडे रेस्क्यू अभियानों में से एक था, जिसमें सेना सहित रेलवे, बीआरओ और अन्य इकईयों के विशेषज्ञ लगे थे। सिलकयारा—बडकोट टनल केंद्र सरकार के आल वेदर रोड प्रोजेक्ट का अहम हिस्सा है इस प्रोजेक्ट के तहत चार धाम यात्रा के करीब 900 किमी मार्ग का निर्माण किया जा रहा है जिसमें कई टनल और ब्रिज भी शामिल हैं।
12 नवंबर को सिलकयारा टनल में करीब 260 मीटर अंदर टनल का हिस्सा ढह गया और 41 मजदूर अंदर फंस गए। इन मजदूरों को निकालने का रेस्क्यू अभियान शुरु हुआ लेकिन सबसे पहले चुनौती ये थी कि मजदूरों के पास आक्सीजन और जरुरी भोजन की व्यवस्था की जाए।

जल्द ही इसमें सफलता मिली और एक छोटा पाइप मलबे से होते हुए मजदूरों तक पहुंचने में कामयाब रहा जिसके बाद मजदूरों को भोजन पहुंचाने में मदद मिली और उनसे संवाद स्थापित हो गया। इस दौरान सीएम पुष्कर सिंह धामी, केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी सहित देश के विशेषज्ञ उत्तरकाशी पहुंच रेस्क्यू अभियान को मॉनीटर करते रहे। यही नहीं टनल के अंदर फंसे मजदूरों का भी हौंसला बढाया जाता रहा और फोन से उनके परिजनों से भी बात भी करायी जाती रही। Uttarakhand Tunnel Rescue
अभियान के दौरान स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार स्थानीय देवता बाबा बोखनाग का छोटा मंदिर भी स्थापित किया गया। 17 दिनों तक चले इस रेस्क्यू अभियान में कई अडचने आती रही, लेकिन रेस्क्यू अभियान में लगे जवानों, श्रमिकों और विशेषज्ञों का हौंसला डिगा नही। अमेरिकन आगर मशीन लगातार आगे बढ रही थी और एक एक कर रेस्क्यू पाइप अंदर जा रहा था। लेकिन पिछले शुक्रवार को आगर मशीन फंस गई और आगे नहीं बढ पाई। जिसके बाद विशेषज्ञों ने तय किया कि अब आगर मशीन काम नही करेगी।
इस बीच रेट माइनर्स बुलाए गए जो उन जगहों पर काम करने में माहिर हैं जहां मशीनें जवाब दे जाती है। हालांकि पहले विशेषज्ञों को लग रहा था कि रेट माइनर्स को 47 मीटर से 57 मीटर तक पहुंचने में काफी समय लग जाएगा लेकिन रेट माइनर्स ने बहुत ही जज्बे से काम किया और सभी बाधाओं को पार करते हुए रास्ता साफ कर दिया।
जिसके बाद टनल के बाहर और अंदर खुशी की लहर दौड गई। रेस्क्यू अभियान भले ही सफल रहा हो लेकिन अभी भी ये सवाल बाकी है कि आखिर टनल बनाते हुए जरुरी एहतियात क्यों नहीं बरती गई। टनल बनाने की जिम्मेदारी नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड के पास थी। हालांकि इस कंपनी के बारे में कई सही गलत जानकारियां सामने आती रही। कुछ लोगों ने इस कंपनी को अडानी से भी जोडने का दावा किया, लेकिन अडानी कंपनी ने एक दिन पहले ही दावों का खंडन करते हुए कहा कि इस कंपनी से अडानी का कोई रिश्ता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर नहीं है।
बहरहाल पर्यावरण विशेषज्ञ ये भी सवाल उठा रहे हैं कि आखिर पहाड में इस अंधाधुंध विकास का क्या मतलब है क्या इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं हो रहा है और सवाल ये भी है कि आखिर विकास करने से पहले क्या पर्यावरण और स्थानीय लेागों को होने वाले नुकसान का आंकलन सही से किया जाता है या नही। Uttarakhand Tunnel Rescue