विकास कुमार।
रवासन नदी में हुए अवैध खनन के बड़े खेल को तिगड़ी ने खेला है। इस तिकड़ी ने ही अवैध खनन से वारे—न्यारे कर डाले हैं। बड़ा सवाल भारतीय जनता पार्टी के मंडल अध्यक्ष आलोक द्विवेदी को लेकर हैं कि आखिर किसकी शह पर एक मंडल अध्यक्ष अवैध खनन का बड़ा खेल खेल रहा था, इसकी तस्वीर साफ होनी चाहिए। दूसरा सवाल जिला जिला प्रशासन को भी सवालों के कटघरे में खड़ा करता है कि आखिर उनके यहां डिफॉल्टर चल रहे मंडल अध्यक्ष को फिर से रिवर ट्रेनिंग की अनुमति आखिर क्यों दे दी गई। जबकि रिवर ट्रेनिंग को लेकर नियम कायदे बने हुए हैं। साफ है कि अवैध खनन की बागडोर कैबिनेट मंत्री स्वामी यतिश्वरानंद का ‘लाडला’ मंडल अध्यक्ष आलोक द्विवेदी ही संभाल रहा था ।
करोड़ों के अवैध खनन को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। एक सवाल तो आलोक द्विवेदी को लेकर ही है कि शुचिता की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी अवैध खनन में फंसे मंडल अध्यक्ष को गले से लगाए रखेगी या फिर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाएगी। दूसरी बात यह है कि जिला प्रशासन आखिर क्यों आखों पर पट्टी बांधे हुए है। पट्टे की आड़ में करोड़ों के वारे न्यारे किए जाने की पूरी आशंका है, फिर भी जिला प्रशासन कैसे मासूम मना रहा, अफसर इतने मासूम तो होते नहीं है। इसकी भी एक उच्च स्तरीय जांच होना जरूरी है। जिससे जिला प्रशासन की भूमिका साफ हो सके। जिला प्रशासन का इतना लंबा चौड़ा नेटवर्क है फिर भी एक मंडल अध्यक्ष अवैध खनन के खेल को अंजाम देता रहा ।
इस बड़े खेल को एक कैबिनेट मंत्री की सरपरस्ती में ही खेल खेला गया है,ये आरोप आम आदमी पार्टी से लेकर कांग्रेस लगा रही है। जिला प्रशासन ही नहीं स्थानीय पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं । एक आमजन को पकड़ कर उसके कागजात चेक करने वाली पुलिस को आखिर क्षेत्र से सैकड़ों की संख्या में खनिज सामग्री लेकर निकल रहे वाहन क्यों नहीं दिखाई दिए। यह सवाल जिला प्रशासन के अधिकारियों पर भी लागू होता है । आप और कांग्रेस के नेताओं का आरोप सीधा है कि कैबिनेट मंत्री की शह पर मंडल अध्यक्ष वारे न्यारे करता रहा, तो वही राजनीतिक संरक्षण के चलते जिला प्रशासन से लेकर पुलिस महकमे के अफसर धृतराष्ट्र बने रहे। देखना दिलचस्प होगा कि प्रदेश की धामी सरकार इस बड़े खेल के उजागर होने के बाद आखिर क्या फैसला लेती है या फिर पूरे मामले को दबा दिया जाता है।
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ऐसे खेल गया पूरा खेल
असल में भाजपा के मंडल अध्यक्ष आलोक द्विवेदी को 2018 में रिवर ट्रेनिंग के नाम पर एक स्थानीय व्यक्ति के आठ हजार वर्ग मीटर बडे प्लाट से करीब आठ हजार घन मीटर उपखनिज निकालने का ठेका दिया गया। जिसमें 17 दिनों के लिए खनन करना था। इसके लिए एक करोड चालीस लाख रुपए भाजपा मंडल अध्यक्ष को देने थे और 35 हजार रुपए जिला खजिन फाउण्डेशन को देने थे। तब मंडल अध्यक्ष ने कुछ दिन काम किया लेकिन प्रशासन ने काम बंद करा दिया। इसके पीछे कई वजह बताई गई। आलोक द्विवेदी का कहना है कि इसके बाद वो कोर्ट चला गया और कोर्ट ने सात दिन काम करने की अनुमति दे दी। आलोक का दावा है कि दो दिन काम किया और बाद में बारिश हो गई जिसके कारण वो काम नहीं कर पाया। लेकिन आलोक द्विवेदी की किस्मत का ताला खुला स्वामी यतीश्वरानंद के मंत्री बनने के बाद। वर्ष 2018 में दिए गए काम को ही आधार मानते हुए शासन से दो माह तक के लिए करीब साढे छह हजार घन मीटर खनन करने की अनुमति आलोक को दे दी गई जो सवालों को घेरे में है। पिछले 25 अक्टूबर से बडे पैमाने पर खनन किया जा रहा था जिसको लेकर अब खुद आलोक द्विवेदी के साथ—साथ स्वामी यतीश्वरानंद निशाने पर हैं।
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मैंने नहीं किया खनन जिसने किया जांच हो
वहीं दूसरी ओर हरिद्वार में प्रेस वार्ता करते हुए आलोक द्विवेदी ने कहा कि रात में वहां से कौन अवैध खनन कर ले जा रहा है। इसे रोकना मेरा काम नहीं है। मैंने वैध खनन किया है और जिसने किया है उसकी जांच कर सरकार कार्रवाई करे। मेरा तो सरकार में शोषण हो रहा है। वहीं आप नेता नरेश शर्मा के आरोपों पर उन्होंने कहा कि आप नेता नरेश शर्मा मुझसे पैसे मांगने आए थे, मैंने नहीं दिए तो आरोप लगाए जा रहे हैं।