ऋषभ चौहान।
हरिद्वार के सबसे चर्चित महानिर्वाणी अखाडे के संत महंत सुधीर गिरी हत्याकांड में अखाडे के ही मुंशी से प्रोपर्टी डीलर बने आशीष शर्मा उर्फ टुल्ली और उसके दो शूटरों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। हालांकि मामले में वादी मुकदमा सहित तीन गवाह पलट गए यानी इन तीनों को पक्षद्रोही घोषित कर दिया गया था लेकिन अदालत ने अन्य सबूतों और गवाहों की रोशनी में अशीष शर्मा उर्फ टुल्ली को हत्या करने का षडयंत्रकारी पाते हुए अपने दो शूटरों से महंत सुधीर गिरी की हत्या कराने का दोषी पाया। आखिर वो कौन से सबूत और गवाह थे जिनके आधार पर इस केस में अदालत ने सजा सुनाई। साथ ही आशीष शर्मा की ओर से अपने बचाव में क्या दलीलें पेश की गई और उनको अदालत ने क्यों नहीं माना इस पर भी रोशनी डालेंगे। Sudhir Giri murder case property dealer Ashish Tully get life imprisonment
————————————
क्या था महंत सुधीर गिरी हत्याकांड
हरिद्वार में अरबों रुपए की संपत्ति वाले नागा संन्यासी अखाडे महानिर्वाणी के महंत सुधीर गिरी की 14 अप्रैल 2012 को रात करीब बारह बजे रुडकी के बेलडा गांव के पास हाई—वे पर बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। महंत सुधीर गिरी अपने वाहन से अकेले ही अपने आश्रम जा रहे थे। बदमाशों ने पीछे से उनकी कार को टक्करी और जब महंत सुधीर गिरी ने वाहन रोका तभी बदमाशों ने गोलियां बरसा दी। महंत सुधीर गिरी की मौके पर ही मौत हो गई। इसमें सिविल लाइन थाने में मुकदमा दर्ज किया गया। हालांकि 26 महीनों तक पुलिस के हाथ खाली रहे लेकिन तत्कालीन हरिद्वार एसएसपी सदानंद दाते ने मामले को गंभीरता से लिया और जांच अधिकारी योगेंद्र सिंह ने मुखबिर की सूचना पर दो शूटरों इम्यिाज उर्फ जुगनु और महताब उर्फ शानू निवासी मुज्जफरनगर को हाजी नौशाद नाम के व्यक्ति के साथ 19 जून 2014 को गिरफ्तार किया। इसके बाद आशीष शर्मा उर्फ टुल्ली को गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने अपनी चार्जशीट में आरोप लगाए कि आशीष शर्मा अखाडे में बतौर मुंशी काम करता था और अखाडे की जमीनों को मुख्य महंत से मिलकर सस्ते में लेकर प्रोपर्टी डीलिंग करता था। ये बात महंत सुधीर गिरी को पसंद नहीं थी और महंत सुधीर गिरी इसका विरोध कर रहे थे। नुकसान होने के कारण आशीष शर्मा ने अपने दो ड्राइवरों इम्तियाज और महताब को 10 लाख रुपए में महंत सुधीर गिरी की हत्या करने के लिए बोला था। पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त पिस्टल भी बरामद की जिससे चली पांच गोलियों से हत्या की गई थी।
————————————————————
गवाह पलटे और आरोपों से किया इनकार
अभियोजन पक्ष की ओर से कुल 18 गवाह मामले में पेश किए गए जिनमें से वादी मुकदमा यानी महंत विनोद गिरी, नवीन कुमार, बंटी कुमार और सचिन कुमार अपने बयानों से पलट गए और इनें पक्षद्रोही घोषित कर दिया गया। वहीं आशीष शर्मा उर्फ टुल्ली, इम्तियाज, महताब और हाजी नौशाद कोर्ट में पुलिस को दिए इकबालिया बयान से पीछे हट गए और खुद को झूठा फंसाने की दलील दी। हालांकि पुलिस ने झूठा क्यों फंसाया और पुलिस से आशीष शर्मा की क्या रजिंश थी। बचाव पक्ष कोर्ट में इसका कोई सबूत पेश करने में विफल रहा।
——————————
महंत रविंद्र पुरी से थे आशीष शर्मा टुल्ली के अच्छे रिश्ते
जांच में ये बात भी सामने आई कि अखाडे में मुंशी का काम कर रहे आशीष शर्मा के मुख्य महंत रविंद्र पुरी से अच्छे रिश्ते थे। जबकि महंत सुधीर गिरी ने साल 2004 में विनोद गिरी व हनुमान बाबा से कहकर उसे नौकरी से निकलवा दिया था। बाद में मुख्य महंत रामसेवक गिरी हो गए थे जिन्होंने 2006 में आशीष शर्मा टुल्ली को दोबारा मुंशी बनाया था। हालांकि जांच अधिकारी योगेंद्र सिंह ने बताया कि ये बात सही है कि महंत रविंद्र पुरी से आशीष शर्मा के अच्छे संबंध थे लेकिन महंत सुधीर गिरी की हत्या करने की बात उन्हें पता नहीं थी। ये जांच में साबित हुआ था।
——————————————————
आशीष शर्मा व अन्यों को बचाने के लिए ये दलीलें दी गई
बचाव पक्ष की ओर दोषियों को बचाने के लिए ये तर्क दिया गया कि पुलिस कस्टडी में जुर्म को कबूल करने से दोष साबित नहीं होता है। इस पर कोर्ट ने कहा कि यही सही है कि जुर्म इकबाल के आधार पर दोष साबित नहीं हेाता है लेकिन आरोपियों से तब पूछताछ की गयी, जब वह पुलिस कस्टडी में नहीं है। बल्कि मुखबिर की सूचना पर आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, जिस पर उनसे पूछताछ की गई है और उन्होंने हत्या करने की बात कबूल की और हत्या में इस्तेमाल हुई पिस्टल को बरामद कराने की बात कही। ये भी महत्वपूर्ण है आरोपियों के बताने के बाद ही पिस्टल को बरामद किया गया और मौके से मिले पांच खाली कारतूसों का मिलान फोरेंसिक लैब ने किया है जो ये साबित करते है कि बरामद पिस्टल से ही गोलियां चली है। इससे पहले पुलिस को पिस्टल के बारे में केाई जानकारी नहीं थी।
बचाव पक्ष की ओर से इसके बाद दलील दी गई कि दौराने जांच केस डायरी में कुछ जांच अधिकारियों ने ये संभावना जताई थी कि महंत सुधीर गिरी की गाडी में कोई और भी बैठा हो सकता है। लेकिन कोर्ट ने इसे मात्र एक संदेह माना। क्योंकि कोई जांच जब शुरु की जाती है तो कई संभावनाओं और संदेहों पर जांच आगे बढती है।
बचाव पक्ष के विद्वान अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि हत्या के पीछे का उद्देश्य साबित नहीं हुआ है और ना ही पुलिस ये बता पाई है कि सुधीर गिरी के साथ किस प्रोपर्टी को लेकर विवाद था। इस पर कोर्ट ने पुलिस की थ्योरी का समर्थन किया जिसमें टुल्ली के अखाडे की प्रोपर्टी सस्ते में खरीदने और प्रोपर्टी डीलिंग कर मोटा मुनाफा कमाने के सबूत पेश किए गए। पुलिस ने 2006 में अखाडे की संपत्ति के विक्रय पत्र अशीष शर्मा, उसकी माता इंदु शर्मा, पिता व भाई के नाम के सबूत पेश किए। कोर्ट ने माना कि आशीष शर्मा प्रोपटी डीलिंग का कार्य करता था, अखाडे की संपत्ति को खरीदता—बेचता था और वहां एकाउंटेंट का काम करता था। इससे बचाव पक्ष ने इनकार नहीं किया है।
जहां तक महंत सुधीर गिरी से विवादित संपत्ति का उल्लेख का प्रश्न है कोर्ट ने माना कि भले ही इसका जिक्र नहीं किया गया है लेकिन उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए विवादित संपत्ति की लिखत पढत जोना जरुरी नही है। बहरहाल 26 महीनों तक पुलिस जिस केस में सिर्फ खाक छानती रही। उसी मामले का खुलासा तब हुआ जब ईमानदार अवसर सदानंद दाते एसएसपी बनकर आए और योगेंद्र सिंह को जांच अधिकारी बनाया गया। आखिरकार पुलिस अदालत में गवाह पलटने के बाद भी अपनी थ्यौरी साबित करने में कामयाब हुई जिसके आधार पर मुंशी से प्रोपर्टी डीलर बने आशीष उर्फ टुल्ली सहित उसके शूटरों को अजीवन करावास की सजा सुनाई गई। जबकि हाजी नौशाद को शूटरों को पनाह देने पर पांच साल की सश्रम कारावास की सजा मिली।