विकास कुमार।
हरिद्वार के जाने—माने आई सर्जन व परिवार के अन्य सदस्यों पर अपनी पत्नी को एक लाख रुपए और स्टीम कार की डिमांड पूरी ना करने के चलते मारपीट करने और घर से बाहर निकालने का आरोप था। इस मामले में पुलिस ने डा. अजय कुमार के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल कर दी थी। बीस साल चले केस के बाद अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए डा. अजय कुमार को दहेज प्रताडना के आरोपों से बरी कर दिया है। डा. अजय कुमार हरिद्वार के कई अस्पतालों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं और फिलहाल अपना क्लिनिक चलाते हैं। लेकिन वो क्या सबूत और दलीलें रही जिनके आधार पर डा. अजय कुमार इस केस से बरी होने में कामयाब रहे।
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क्या था पूरा मामला
असल में डा. अजय कुमार की शादी 23 फरवरी 1999 को कनखल निवास अनुपमा पुत्री मोहनलाल के साथ हुई थी। अनुपमा के पिता के आरोप लगाया था कि शादी के बाद से डा. अजय कुमार उनके पिता बलबीर, माता अंगूरी देवी, भाई राकेश कुमार दहेज के लिए प्रताडित करते थे और 17 सितम्बर 1999 को ससुराल पक्ष ने अनुपमा को घर से बाहर निकाल दिया था। इसके बाद अनुपमा ने एक बच्ची को जन्म भी दिया। यही नहीं चार मार्च 2001 को अजय कुमार, बलबीर, अंगूरी देवी, राकेश कुमार व डा. अजय कुमार की बहन डा. शारदा स्वरूप व डा. के स्वरूप उनके घर आए व अनुपमा को दहेज की मांग पूरी ना करने पर बुरी तरह पीटा। मोहनलाल की ओर से पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ धारा-498ए,323,506 भारतीय दण्ड संहिता व 3/4 दहेज प्रतिशेध एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया। जांच में डा. शारदा स्वरूप व डा के स्वरूप का घर जाकर मारपीट की बात सामने नहीं आई इसलिए उनका नाम केस से निकाल दिया गया। बाद में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी। वहीं केस के दौरान डा. अजय कुमार के पिता बलबीर, माता अंगूरी देवी और भाई राकेश कुमार की मृत्यु हो गई और अब केस सिर्फ डा. अजय कुमार के खिलाफ जारी रहा।
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पत्नी अनुपमा बयान से पलटी, दो गवाह भी हुए होस्टाइल
वहीं कोर्ट में सुनवाई के दौरान डा. अजय कुमार पर आरोप लगाने वाली उनकी पत्नी अनुपमा ने साफ इनकार किया कि उन्होंने अपने पिता मोहनलाल को डा. अजय कुमार के दहेज मांगने वाली बात नहीं बताई थी और तहरीर में पिता ने क्या लिखाया इस बात से भी उन्होंने जानकारी होने से इनकार कर दिया। हालांकि मोहनलाल अपने आरोपों पर डटे रहे। इस बीच चार अप्रैल 2001 मोहनलाल ने गवाह राम लखन निगम और बलराम सिंह की मौजूदगी पर डा. अजय कुमार व उनके परिवार पर घर में आकर अनुपमा से मारपीट का आरोप लगाया था। इन दोनों गवाहों ने भी किसी भी प्रकार की मारपीट होने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने इस दोनों गवाहों को पक्षद्रोही घोषित कर दिया। वहीं चार मार्च को उा. अजय कुमार शहर में नहीं थे उन्होंने डा. रवि मोहन व डा. नरेंद्र कुमार बालियान की गवाही से मेरठ में होना साबित कर दिया। लिहाजा, इन सभी सबूतों और साक्षयों के आधार पर कोर्ट ने डा. अजय कुमार को आरोपों से बरी कर दिया। डा. अजय कुमार की ओर से उनका केस एडवोकेट गजेंद्र सिंह शाह लड रहे थे जबकि सरकारी अधविक्ता विनय गुप्ता थे। फैसला बीस साल बात एक सितम्बर को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम हरिद्वार मंजू देवी की कोर्ट ने सुनाया।
Waah re India ki nyaay parnali…..dhay h….aadmi mar gye 20 sal tk justice aankhe mude kyaa rahe the