Nagar Nigam Election मेयर, पालिकाध्यक्ष और पार्षद पद पर चुनाव लड़ने के लिए मारामारी मची है। पूर्व पार्षद से लेकर नए नेता और युवा चिंटू नेता भी टिकट के लिए सबकुछ कर गुजरने से पीछे नहीं हट रहे हैं। लेकिन सवाल ये है कि आखिर ये मारामारी क्यों मची है। एक पार्षद की कितनी कमाई हो जाती है और मेयर पूरे कार्यकाल में कितने बना लेता है। इस बारे में हमने पूर्व पार्षदों और पत्रकारों से बात की और जाना कि आखिर कितनी कमाई हो जाती है।
कितने लाख रुपए की कमाई हो जाती है
एक पूर्व पार्षद ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि राजनीति बहुत महंगी हो गई है। सबकुछ पैसे के बल पर हो रहा है। अब जो इतने पैसे लगाएगा वो रिर्टन करने की भी सोचेगे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि विकास के लिए बहुत बजट है और वार्डों में खर्च भी होता है। भाजपा और कांग्रेस के कुछ पार्षदों को छोड दें तो अधिकतर जोड तोड करने में कामयाब हो जाते हैं। कुछ पार्षद बनकर अपना काम या धंधा शुरु कर देते हैं। कई मदों में विकास के लिए पैसा आता है और ये सब पार्षद की अपनी काबलियत और स्वभाव पर होता है कि वो कितना बना पाता है।
वरिष्ठ पत्रकार रतनमणी डोभाल ने बताया कि पार्षद बन अगर पैसा नहीं कमाया जाता तो इतनी मारा मारी क्यों है। ये भी सोचने वाली बात है। आजकल के नेता सिद्धांतों वाले तो हैं नहीं ऐसे में साम दाम दंड भेद करके जो मिल जाए, उसे छोडते भी नहीं है। ब्रेको प्रकरण में हर बार जो चर्चाएं चलती है वो भी किसी से छिपी नहीं है। ये कहना कि पैसा नहीं मिलता या बनता ये गलत होगा। इसी तरह मेयर का भी हाल होता हैं हालांकि मेयर को बहुत ज्यादा अधिकार नहीं होता है। लेकिन फिर भी मेयर की अपनी काबलियत होती है कि वो सिस्टम में कितना सेट बैठ पाता है या कितनी सेटिंग बिठा पाता है। Nagar Nigam Election
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क्या कहते हैं पूर्व पार्षद
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पार्षद अनिरूद्ध भाटी ने बताया कि वो लंबे समय से निकाय चुनाव की राजनीति कर रहे हैं और हमसे भी अक्सर ये पूछा जाता है कि पार्षद बनकर क्या कमाई हो जाती है। कई युवा पार्षद बनना चाहते हैं। अक्सर कई लोगों को लगता है कि पार्षद की मोटी कमाई होती है। लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है। पार्षद एक सम्मान का पद है और इसमें घर से पैसा लगाना पड़ता है। जिनको समाजसेवा का जुनून हो या जो लोगों की समस्याओं के लिए समय दें पाए। अपने निजी जीवन का त्याग कर पाएं। उसे ही पार्षद या प्रधान पद का चुनाव लडना चाहिए। क्योंकि जनता किसी भी समस्या के लिए सबसे पहले पार्षद या प्रधान के पास ही जाती है। इसलिए कई नए लोग जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते हैं और जनता दूसरे चुनाव में बदल देती है।