K.D.
भ्रष्टाचार का आरोप लगाने से बौखलाकर आमजन को कोतवाली कैंपस में ही बुरी तरह से डंडे से पीटने के आरोप में घिरे कोतवाल यशपाल बिष्ट को मंगलौर से हटाकर सिविल लाइन कोतवाली की जिम्मेदारी देकर आला अफसरान ने एक तरह से विवाद से पीछा छुड़ाया है लेकिन इस पूरे प्रकरण को लेकर कई सवाल ज्यों के त्यों है। बड़ा सवाल यह है कि सीओ बहादुर सिंह चौहान की मौजूदगी में कोतवाली प्रभारी का इस तरह का आचरण भला कहां तक जायज है और कोतवाली प्रभारी इस तरह भददी भददी गालियां अपने वरिष्ठ अफसर एवं जनप्रतिनिाधियों की मौजूदगी में दे रहे है, क्या यही उत्तराखंड पुलिस का आचरण है।
अगर यही है कि डीजीपी अशोक कुमार को पुलिसिंग को लेकर बड़े बड़े दावे करना बंद कर देना चाहिए। पूरी वीडियो में कोतवाली प्रभारी खाकी में इंसान जैसे पुलिसकर्मी की तरह तो बिल्कुल भी पेश नहीं आ रहे है और अन्य पुलिसकर्मी की भूमिका पर भी सवाल खडे हो रहे हैं। अगर किसी ने आरोप जड़ा भी है तो उस पर इस तरह का आरोप लगाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया जा सकता था, आखिर कानून इसी लिए ही तो है। लेकिन बौखलाकर खुद ही कानून हाथ में लेना क्या सही है, अगर कोई आमजन किसी अदने से पुलिसकर्मी से भी उलझ जाता है तो उस पर इतनी धाराएं चिपका दी जाती है, जिससे पीछा छुड़ाने में जीवन गुजर जाता है लेकिन छूटती नहीं है।
पूरी तस्वीर साफ होने के बाद भी आला अफसरान ने इस तरह के आचरण वाले कोतवाल को दूसरी कोतवाली की कमान देकर आमजन के साथ ही अन्याय किया है, इस तरह का व्यवहार रखने वाले कोतवाली प्रभारी के समक्ष क्या कोई पीड़ित अपनी शिकायत लेकर जा सकेगा, यह भी अपने आप में यक्ष प्रश्न है। क्या इस तरह के पुलिस अफसर को जिम्मेदारी सौंप देना सही है। जब पूरे मामले की तस्वीर वीडियो में शीशे की तरह साफ है तो फिर जांच का नाटक आखिर क्यों रचा जा रहा है। इस मामले में आला अफसरों की कार्रवाई पर भी सवाल खडे हो रहे हैं।
पुलिसकर्मियों पर दर्ज हो मुकदमा
भाजपा नेता और कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं कि कोतवाली कैंपस में जिस तरह से लाठीचार्ज हुआ है वह सरासर अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसे में कोतवाली प्रभारी से लेकर अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ पीड़ित पक्ष की तरफ से मुकदमा कायम होना चाहिए, तभी भविष्य में इस तरह की घटना की पुनरावृति होने से बच सकेगी।
विवादो के सरताज यशपाल
हरिद्वार, प्रभारी निरीक्षक यशपाल बिष्ट का विवादों से पुराना नाता है। देहरादून में डालनवाला कोतवाली की जिम्मेदारी संभालने के दौरान नगर निगम के आयुक्त से उलझना उन्हें भारी पड़ा था। तब भी कुर्सी गई थी लेकिन अपनी सेटिंग गेटिंग के चलते विवादों में आए कोतवाली प्रभारी ने अपना तबादला एसटीएफ में करा लिया था। कुछ समय बाद वह हरिद्वार जिले में पहुंचे तब एक शराब तस्कर की शिकायत पर जिला आबकारी अधिकारी प्रशांत कुमार के खिलाफ कोतवाली रानीपुर में मुकदमा लिखकर विवाद खड़ा था। तब भी उसका गैर जनपद ट्रांसफर हुआ था लेकिन पहुंच के चलते आईजी रेंज कार्यालय में अटैच करा लिया था। एसओ राजपुर की कुर्सी भी एक विवाद के चलते ही गई थी और अब फिर नया विवाद सामने है।