बिंदिया गोस्वामी/विकास कुमार।
रानीपुर विधानसभा में बडे—बडे बैनर पोस्टरों के सहारे तैयारी कर रहे बीएचईएल के श्रमिक नेता राजबीर सिंह चौहान को कांग्रेस से इस बार भी निराशा मिल सकती है। राजबीर सिंह हरीश रावत खेमे से आते हैं और रानीपुर विधानसभा चुनाव से पिछले काफी समय से तैयारी कर रहे हैं। पिछले चुनाव में भी उन्होंने टिकट मांगा था लेकिन तब अंबरीष कुमार को टिकट दिया गया था। इस बार भी ऐसा ही गणित बनता दिख रहा है, जिसके चलते राजबीर सिंह का टिकट खटाई में पडता दिख रहा है।
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क्या कारण बताते हैं वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि डोभाल बताते हैं कि पहला कारण ये है कि राजबीर चौहान ठाकुर हैं और हरीश रावत या उनके परिवार से हरिद्वार में चुनाव लडने की प्रबल संभावना है ऐसे में ओबीसी—दलित—मुसिलम बाहुल्य वाले जनपद हरिद्वार में दो—दो ठाकुरों को टिकट शायद ना दिया जाए। रावत परिवार या अन्य कोई ठाकुर आता है तो राजबीर सिंह के अलावा किसी अन्य को तरजीह दी जाएगी। दूसरा कारण ये है कि रानीपुर सीट पर चौहान वोट ब्राह्मण और ओबीसी के मुकाबले कम हैं और जो हैं उन पर राजबीर चौहान से ज्यादा आदेश चौहान का कब्जा है। तीसरा कारण ये है कि बीएचईएल श्रमिक यूनियन नेता होने के कारण बीएचईएल की दूसरी युनियनों में उनका प्रभाव बहुत कम हैं जिसका नुकसान उन्हें उठाना पड सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार आदेश त्यागी बताते हैं कि रानीपुर विधानसभा में भोगौलिक और जातीय गणित बहुत उलझा हुआ है। यहां पोस्टर बैनरों के जरिए वोटरों तक नहीं पहुंचा जा सकता है। राजबीर कांग्रेस के पुराने नेता है लेकिन उनकी दावेदारी इतनी मजबूत नहीं है। सिर्फ हरीश रावत के करीबी होने से टिकट मिल जाएगा, ऐसा मुझे प्रतीत नहीं होता है। एक अन्य कारण ये भी है कि पार्टी ने उन्हें शिवालिक नगर पालिका चुनाव लडने का आफर किया था लेकिन उन्होंने चुनाव लडने से मना कर दिया था। ये उनका सबसे बडा नकारात्मक पहलू हैं। भेल श्रमिकों का विरोध और रानीपुर विधानसभा के एक इलाके तक सिमटे रहना भी बडा कारण है। हालांकि उनके मुकाबले दूसरे दावेदार भी आधी—अधूरी तैयारियों में ही लगे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार राव शफात अली ने बताया कि राजबीर चौहान जिस कद के नेता हैं उसके हिसाब से उनकी तैयारी नजर नहीं आ रही है। आलम ये है कि आदेश चौहान के खिलाफ दो शब्द बोलते हुए उनके मुंह में दही जम जाती है। रानीपुर की समस्याएं हो या फिर सिडकुल में श्रमिकों का शोषण राजबीर चौहान सेफ पॉलिटिक्स करते रहे हैं, जो उनकी दावेदारी को कमजोर बनाता है।

