सूबे को हिलाकर रख देने वाले बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड में शामिल रहे आरोपियों को उम्रकैद की सजा होने पर पहाड़ की बेटी को इंसाफ मिला है। यही नहीं प्रदेश के सीएम पुष्कर सिंह धामी की छवि केवल सीएम की ही नहीं बल्कि संवेदनशील इंसान के तौर पर देश भर में उभरकर आई है। जिन्होंने तुरंत ही हाईप्रोफाइल हत्याकांड में एसआईटी बनाई बल्कि कोर्ट में भी बड़ी शिद्दत से पैरवी कराई,उसी का नतीजा आज दरिंदो को मिली सजा के तौर पर सामने है।

32 महीने बाद आए फैसले ने जहां अंकिता के परिजन की इंसाफ की आस पूरी हुई है,वहीं पहाड़ की बेटी को इंसाफ मिलने की बात हर किसी की जुबा पर है।ये सब यू ही संभव नहीं हुआ है,इसके पीछे सरकार की संवेदनशीलता ही थी।
इस पूरे मामले में धामी सरकार ने न केवल संवेदनशीलता दिखाई, बल्कि विलंब के बजाय निर्णय की गति को चुना।
घटना के 24 घंटे के भीतर आरोपियों को जेल भेजना, SIT का गठन कर जांच को तेज़ और पारदर्शी बनाना, आरोपियों पर गैंगस्टर एक्ट लगाना, 500 पन्नों की चार्जशीट तैयार करना—ये सब दिखाता है कि जब सरकार गंभीर होती है, तो न्याय की प्रक्रिया न रुकती है, न झुकती है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पीड़ित परिवार के आंसू ही नहीं पोछे बल्कि 25 लाख की आर्थिक मदद देकर उनका साथ दिया। यही नहीं अंकिता के भाई और पिता को सरकारी नौकरी देकर एक व्यावहारिक सहानुभूति की मिसाल पेश की। सरकार ने एक दो नहीं बल्कि तीन बार वकील बदले ,जिससे पैरवी पूरी तरह से मजबूत हो। सरकारी वकील की दमदार पैरवी से बार-बार आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज होती रहीं।
फैसले से साफ है कि मुख्यमंत्री धामी के राज में न अपराधी बच सकता है, न ही कोई पीड़ित अकेला पड़ सकता है। उत्तराखंड की जनता के साथ वे हर वक्त खड़े है, इस मामले में आया फैसला इस पर मुहर लगाता है।
इस फैसले से यह भी साबित हुआ कि धामी सरकार के राज में बेटियों की गरिमा और न्याय व्यवस्था दोनों सुरक्षित हैं। मुख्यमंत्री ने साबित किया है कि वे न तो दबाव में झुकते हैं और न ही संवेदनाओं को अनसुना करते हैं। उन्होंने कहा था