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विकास की राह तकता कलियर: क़ाज़ी की तरह आवाज क्यों नहीं उठा पाए हाजी, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार

विकास कुमार/अतीक साबरी

उत्तराखंड विधानसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व दो विधायकों ने किया। जिसमें मंगलौर से काजी निजामुद्दीन थे तो दूसरी तरफ कलियर विधानसभा से हाजी फुरकान अहमद। हालांकि क़ाज़ी निजामुद्दीन ने अपनी काबिलियत के बल पर खुद को एक वर्ग तक महदूद नहीं रखा और समाज के दूसरे तबको से लेकर गरीब, बेरोजगार, पीड़ित सब की आवाज विधानसभा से सड़क तक उठाने का काम किया। खासतौर पर विधानसभा में जिस तरीके से काजी निजामुद्दीन ने जनहित के मुद्दों को उठाया। वह काबिले तारीफ है और उनके विरोधी भी इस बात की तारीफ करते हैं। लेकिन दूसरी ओर कलियर से लगातार दो बार जीतने वाले फुरकान अहमद अपनी जन नेता की छवि को मजबूत नहीं कर पाए। हालांकि कलियर में उनके सामने बसपा के कद्दावर नेता शहजाद लड़े और दोनों बार ही शिकस्त खाने को मजबूर हुए। लगातार दो बार जीतने के बाद भी फुरकान अली कलियर को विकास की रफ्तार नहीं दे पाए।

कलियर आज भी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहा है। यही नहीं सूफी नगरी होने के बावजूद कलियर पिछले 10 सालों में बड़ी योजनाओं से भी महरूम रहा। लोगों का मानना है कि कलियर की आवाज को विधायक फुरकान अहमद मजबूत तरीके से उठाने में सफल नहीं हो सके। विधानसभा में उनका प्रदर्शन बहुत निराशाजनक रहा। जहां एक और काजी निजामुद्दीन अपने मुद्दों को बेबाकी से रखते हुए नजर आए। वही फुरकान अहमद इस मामले में काफी पीछे रह गए। हालांकि अपनी विधायक निधि से जितना किया जा सकता था फुरकान अहमद ने कोशिश की।

वरिष्ठ पत्रकार अनवर राणा बताते हैं कि फुरकान अहमद और काजी निजामुद्दीन दोनों की तुलना नहीं की जा सकती है। दोनों में जमीन आसमान का अंतर है। काजी निजामुद्दीन भले ही 2012 में सरवत करीम अंसारी से हार गए हों, लेकिन वह एक बड़े नेता है और मुद्दों को उठाना जानते हैं उन्हें पता है विधानसभा में कैसे और कब किस बात को रखना है। यही कारण है कि उनकी गिनती उन चंद नेताओं में होती है जो समझदार और बेहतर राजनीतिक समझ रखते हैं। वहीं दूसरी और फुरकान अहमद है जो अपनी बात को स्पष्ट तौर पर नहीं रख पाते हैं। इसका खामियाजा कलियर को भुगतना पड़ा। कलियर में आज मूलभूत समस्याओं का अभाव है, धार्मिक स्थल होने के बावजूद भी यहां कोई बड़ी योजना नहीं आ सकी। जबकि फुरकान अहमद अगर मजबूती से यह बात रखते या फिर से कलियर की पहचान का हवाला देते हुए सरकार से कुछ मांग रखते तो शायद कलियर का कुछ विकास हो पाता। लेकिन फुरकान अहमद की पहचान एक सीधे और सरल नेता की है जिसे ग्रामीण जनता पसंद करती है। वह आसानी से लोगों से मिल जाते हैं उनके साथ उठते बैठते हैं जो लोगों को पसंद आता है। यही कारण है कि लगातार दो बार से जीत रहे हैं। लेकिन खाली जीतने से काम नहीं चलता विधायक निधि सीमित होती है और उसमें सीमित ही काम कराए जा सकते हैं। इसलिए जनप्रतिनिधि ऐसा होना चाहिए जो स्थानीय मुद्दों को प्रदेश और देश स्तर पर मजबूती से उठा सकें।

वरिष्ठ पत्रकार जुबेर बताते हैं फुरकान अहमद एक अच्छे इंसान हो सकते हैं और जमीन से जुड़े होने के कारण वह लगातार दो बार मोहम्मद शहजाद जैसे कद्दावर नेता को हराने में कामयाब रहे। हालांकि कलियर क्यों बदहाल है इसका जवाब बेहतर फुरकान अहमद दे सकते हैं क्योंकि उनके कंधों पर ही कलियर के विकास की जिम्मेदारी जनता ने दी थी। हालांकि कलियर की बदहाली का जिम्मेदार विपक्ष भी उतना ही है जितना सत्तापक्ष क्योंकि फुरकान अहमद की कमियों को विपक्ष ने मजबूती से नहीं उठाया। क्योंकि अब शहजाद कलियर छोड़ लक्सर चले गए हैं । हालांकि भाजपा के मुनीष सैनी सहित कई दूसरे नेता तैयारी कर रहे हैं जो सर्व समाज में अपनी पैठ रखते हैं। वही आम आदमी पार्टी की मजबूती से चुनाव लड़ रही है। जबकि बसपा थी अपने जातीय समीकरण के तहत मैदान में डटी है। इस बीच कलियर को अभी भी इंतजार है विकास का, उस जनप्रतिनिधि का जो कलियर की समस्याओं को दूर कर सके, और यहां के लोगों का जीवन बेहतर बना सके।

क्या कहते हैं हाजी फुरकान अहमद
कलियर विधायक हाजी फुरकान अहमद ने बताया कि बडी योजनाओं का जहां तक सवाल है। पांच राजकीय कॉलेज और एक डिग्री कॉलेज बनाया गया। पुल और सडकों का निर्माण इसके अलावा कब्रिस्तान की बाउड्री, नाली, नल आदि काम कराए गए हैं। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में विकास हुआ लेकिन भाजपा सरकार ने कलियर की ओर से मुंह मोड लिया। विधानसभा में मुद्दों को उठाने की जहां तक बात है मैंने प्रमुखता से अपनी बात को रखा है।

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