रतनमणी डोभाल/विकास कुमार/अतीक साबारी।
हरिद्वार के बडे दलित नेता सुबोध राकेश ने भाजपा को अलविदा कहकर बसपा का दामन थाम लिया है। कुछ दिन पहले तक अबकी बार—फिर डबल इंजन सरकार और साठ पार का नारा लगाने वाले सुबोध राकेश ने अचानक भाजपा क्यों छोडी, इस बारे में हमने उनसे बात की और उन्होंने क्या कहा आइये जानते हैं….
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भाजपा के स्थानीय नेताओं ने मजबूर किया
सुबोध राकेश ने कहा कि भाजपा जिलाध्यक्ष जयपाल चौहान मेरे खिलाफ लॉबी तैयार कर रहे थे। जिन लोगों ने भाजपा को हराने का काम किया और लगातार पार्टी विरोधी काम कर रहे थे, उनको जयपाल चौहान और अन्य पदाधिकारी पदों पर नवाज रहे थे और हमें नजरअंदाज किया जा रहा था। मैं पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा से लडा और बहुत कम अंतर से हार मिली। लेकिन हमारी कुर्बारियों का कोई सिला नहीं मिला। यहां तक की शिकायत के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। जिसके कारण मैंने पार्टी छोडने का निर्णय लिया।
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आरोप: जातीय समीकरण साधने के लिए ज्वाइन की पार्टी
जब उनसे पूछा गया कि भगवानपुर विधानसभा का जातीय समीकरण साधने के लिए आपने भाजपा छोड बसपा में जाने का फैसला किया तो उन्होंने कहा कि भगवानपुर के समीकरण चाहे जो हो लेकिन मैं अपने दम पर दलित और अन्य वर्गों के वोट लेने में कामयाब रहा। इस बार मेरी पहले से भी ज्यादा तैयारी थी। लेकिन जिस तरह से मुझे अपमानित किया जा रहा था। मुझे ये कतई बर्दाश्त नहीं हुआ।
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आपकी भाभी ममता राकेश का कार्यकाल कैसे रहा
ममता राकेश का कार्यकाल पूरी तरह निराशाजनक रहा और जिनता विकास मेरे भाई और आदर्श स्व. सुरेंद्र राकेश ने भगवानपुर का किया। उसके बाद सात साल के कार्यकाल में ममता राकेश कुछ नहीं कर पाई। आज जनता बदलाव चाहती है और भगवानपुर को नई उंचाईयों पर ले जाना चाहती है।
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क्या आपने अपनी भाभी ममता राकेश को कभी सलाह दी
जब सीमाएं लांघी जाती है और एक लाइन खींच कर काम किया जाता है तो वहां ये गुंजाइश नहीं रहती है। हालांकि वो रिश्ते में मेरी भाभी हैं। लेकिन राजनीति में भाई भी आपस में विचारधारा और जनमुद्दों को लेकर अलग हो जाते हैं। ऐसे में ये एक राजनीतिक लडाई है और क्षेत्र के विकास का मुृद्दा है।
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क्या आप इस कारण भाजपा से गए क्योंकि दलित वोट छिटक रहा है
दलित वोट बैंक कभी भाजपा का नहीं रहा। पिछले चुनाव में लोगों ने सुबोध राकेश को वोट किया था। भाजपा के पास कभी दलित वोट बैंक नहीं रहा। मेरा समाज मेरा साथ खडा है और दूसरे वर्गों का भी साथ मुझे मिलता रहा है।
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