विकास कुमार।
हरिद्वार विधानसभा क्षेत्र में हुए पुस्तकालय घोटाले में हाईकोर्ट ने एक बार फिर बेहद कड़ा रुख अपनाया है। और पुस्तकालय निर्माण से जुड़े तमाम दस्तावेज सरकार से तलब किए हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर इसके दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं तो इस पूरे मामले की सीबीआई जांच कराएगी। वही कोर्ट के लगातार चल रहे सख्त रवैये से हरिद्वार के मौजूदा विधायक और भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। 2010 में मदन कौशिक ने अपनी विधानसभा में पुस्तकालय बनवाए थे। निर्माण में हुए घोटाले को लेकर एक जनहित याचिका हरिद्वार के स्थानीय व्यक्ति सच्चिदानंद डबराल ने हाईकोर्ट में दायर की थी।
कोर्ट में उनके वकील शिव भट्ट ने बताया कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हरिद्वार में 2010 में हुए पुस्तकालय घोटाले के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार से पुस्तकालय के टेंडर से लेकर अब तक का पूरा रिकार्ड कोर्ट में पेश करने को कहा है। कोर्ट ने कहा अगर राज्य सरकार रिकॉर्ड नही उपलब्ध कराती है तो मामले की सीबीआई से करायी जाएगी। अधिवक्ता शिव भट्ट ने कोर्ट को अवगत कराया कि 12 पुस्तकालय में से 10 पुस्तकालय जो बनाए गए है वे मंदिरों में व मदन कौशिक के वर्करों के घरों में बनाए गए है। जो अभी चालू हालत में नही है। इनमें से 5 पुस्तकालय पर कब्जा नही लिया जा सकता क्योंकि वे घरों में बने है।
आपको बता दे देहरादून निवासी सच्चिदानंद डबराल द्वारा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि 2010 में तत्कालीन विधायक मदन कौशिक के द्वारा विधायक निधि से करीब डेढ़ करोड़ की लागत से 16 पुस्तकालय बनाने के लिए पैसा आवंटित किया गया था पुस्तकालय बनाने के लिए भूमि पूजन से लेकर उद्घाटन तक का फाइनल पेमेंट कर दी गई। लेकिन आज तक धरातल पर किसी भी पुस्तकालय का निर्माण नहीं किया गया । इससे स्पष्ट होता है कि विधायक निधि के नाम पर विधायक ने तत्कालीन जिला अधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी समेत ग्रामीण निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता के साथ मिलकर बड़ा घोटाला किया गया ।
याचिकाकर्ता का कहना है कि पुस्तकालय निर्माण का जिम्मा ग्रामीण अभियंत्रण सर्विसेस को दिया गया और विभाग के अधिशासी अभियंता के फाइनल निरीक्षण और सीडीओ की संस्तुति के बाद काम की फाइनल पेमेंट होती है तो ऐसे में विभाग के अधिशासी अभियंता और सीडीओ के द्वारा बिना पुस्तकालय निर्माण के ही अपनी फाइनल रिपोर्ट लगाकर पेमेंट कर दिया गया जिससे स्पष्ट होता है कि अधिकारियों की मिलीभगत से बड़ा घोटाला हुआ है लिहाजा पुस्तकालय के नाम पर हुए इस घोटाले की सीबीआई जांच करवाई जाए।