विकास कुमार।
उत्तराखण्ड में गुरुवार को 85 लोगों ने दम तोड दिया। इनमे निरंजनी अखाडे के वरिष्ठ संत भी शामिल हैं। वहीं दूसरी ओर कोरोना के 6251 नए मामले भी दर्ज किए गए। देहरादून और हरिद्वार दोनों ही जनपदों में सबसे ज्यादा कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं और दोनों ही जनपदों में मरने वालों का आंकडा भी ज्यादा है। देहरादून में गुरुवार को जहां 2027 केस आए वहीं हरिद्वार में 1163 केस रिपेार्ट किए गए।
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मुस्लिम इलाकों में कोरोना का क्या है हाल
कोरोना ने लगभग हर क्षेत्र को निशाना बनाया है लेकिन मीडिया में शमशान घरों में जलती चिताओं की तस्वीरें ज्यादा सामने आ रही है। लेकिन मुस्लिम इलाकों में कोरोना से क्या हालात है, क्या यहां भी संक्रमण फैल रहा है और मौतें हो रही है। इस बारे में वरिष्ठ पत्रकारों ने आंखें खोल देने वाली तस्वीर बयां की है।
वरिष्ठ पत्रकार एहसान अंसारी ने बताया कि अधिकतर मुस्लिम इलाके घनी आबादी वाले हैं और यहां संक्रमण का अच्छा नहीं कहा जा सकता है। लेकिन अफसोस इस बात का है कि अधिकतर लोग टेस्ट नहीं करा रहे हैं और ना ही इसमें दिलचस्पी दिखा रहे हैं। मरने वालों की संख्या की बात करें तो मौतें यहां भी हो रही है और पिछले कुछ समय में कई लोगों की मौते अकेले ज्वालापुर में हुई है। चूंकि यहां टेस्ट नहीं हो रहे हैं और अस्पताल भी आखिरी वक्त पर जा रहे हैं तो इन्हें इलाज भी नहीं मिल पा रहा है। लेकिन जितनी मौतें हो रही है वो सामान्य नहीं कही जा सकती है। सोशल डिस्टेसिंग और मास्क का भी पालन इन इलाकों में नहीं हो रहा है। मस्जिदों के इमाम कुछ प्रयास कर रहे हैं लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं है। गंभीर बात ये है कि ना तो प्रशासन यहां ध्यान दे रहा है और ना ही मुस्लिम नेता। वैक्सीनेशन को लेकर भी बहुत कम जागरूकता है।
वरिष्ठ पत्रकार राव शफात अली ने बताया कि हालात सब जगह एक जैसे ही हैं। देहरादून में जागरूकता ज्यादा है और यहां लोग कोविड गाइडलाइन का भी पालन कर रहे हैं। लेकिन हरिद्वार में स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। लोगों को समझना चाहिए कि संक्रमण एक बार घनी आबादी में घुसा तो संभालना मुश्किल हो जाएगा।
वरिष्ठ पत्रकार मेहताब आलम ने बताया कि मुस्लिम इलाकों में व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त है। यहा ना तो टेस्ट हो रहे हैं ना ही कोई मोहल्लों को सेनेटाइज करने आ रहा है। लोग जागरूक भी नहीं हो रहे हैं। हालांकि धर्मगुरु मस्जिदों में लोगों को एहतियात बरतने के लिए कह रहे हैं। लेकिन लोगो में उतनी जागरूकता नही है। मुसलमानों के रहनुमा फेसबुक पर व्यस्त हैं और जमीन पर हालात जस के तस हैं। हालांकि, संक्रमण की रफ्तार अभी उतनी नहीं है लेकिन अभी नहीं संभले तो बहुत देर हो जाएगी। ये भी देखा गया है कि पुलिस इस बार कुछ नरम हैं और बहुत ज्यादा कार्रवाई करने के मूड में नहीं दिखती है।
मंगलौर के अधिवक्ता खालिद काजमी बताते हैं कि मंगलौर में कोरोना के हालात बेहद डरावने वाले हैं लेकिन कोई अपनी जांच कराने को तैयार नहीं है। सब झोलाछापों के भरोसे इलाज करा रहे हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधि चादर ताने बैठे हैं। प्रशासन को यहां कोविड केयर सेंटर बनाना चाहिए ताकि टेस्टिंग के बाद लोगों को रखा जा सके।