विकास कुमार/अतीक साबरी।
हरिद्वार जनपद में दलित और मुसलमानों के बाद सैनी समाज बडी संख्या में हैं, बावजूद इसके उत्तराखण्ड बनने के बाद सैनी समाज कभी राजनीतिक शक्ति हासिल नहीं कर पाया। चाहे कांग्रेस से हो या फिर भाजपा से या बसपा से सभी पार्टियों के सैनी उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा। बडा वोट बैंक होने के बाद भी सैनी समाज हाशिये पर क्यों चला गया, इस बारे में हमने सैनी समाज के ही नेताओं से बात की और जिन्होंने विभिन्न कारणों पर विस्तार से बताया….
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परिसीमन से हुआ नुकसान
यूपी के समय के कद्दावर नेता राम सिंह सैनी बताते हैं कि उत्तराखण्ड बनने के बाद परिसीमन में सैनी वोट बैंक विभाजित हो गया और समाज का बडा वोट बैंक ज्वालापुर, भगवानपुर और झबरेडा जैसी सीटों पर विभाजित हो गया। हालांकि अन्य सीटों भी सैनी वोट निर्णायक भूमिका में रहे लेकिन अपने दम पर जीत पाए ऐसी स्थिति नहीं रही। सैनी समाज से आने वाले वरिष्ठ पत्रकार मनोज सैनी भी परिसीमन को काफी हद तक जिम्मेदार मानते हैं। मनोज सैनी ने बताया कि परिसीमन इस तरीके से हुआ कि किसी भी सीट पर सैनी बडा वोट बैंक नहीं रहे। हालांकि हर सीट पर निर्णायक भूमिका में आज भी हैं।
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जाति—धर्म की राजनीति ने नुकसान पहुंचाया
वहीं वरिष्ठ नेता राम सिंह सैनी बताते हैं कि सैनी समाज के नेता उत्तराखण्ड बनने से पहले विधायक बनते रहे और सभी वर्गों का समर्थन भी बडी संख्या में मिलता था। लेकिन अब जाति और मजहब की राजनीति बहुत ज्यादा प्रभावी है। कांग्रेस से जब सैनी उम्मीदवार लडते हैं तो अगर बसपा से मुस्लिम उम्मीदवार होता है तो मुस्लिम वोट बैंक वहां शिफ्ट हो जाता है। बहादराबाद से शहजाद की जीत का यही कारण रहा। हालांकि एक वक्त ये भी था कि जब मैंने चुनाव लडा तो काजी जैसे बडे नेताओं को उनके गढ में हराने का काम किया और मुस्लिम वोट बडी संख्या में मिला। भाजपा से उम्मीदवार भी जातीय समीरण बनाने में कामयाब नहीं हो पाए।
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भाजपा ने सी ग्रेड की सीटें सैनी समाज को दी
आल इंडिया सैनी सभा के प्रदेश अध्यक्ष राज कुमार सैनी बताते हैं कि राजनीतिक दल चाहे भाजपा हो या कांग्रेस सैनी समाज के उम्मीदवारों को अच्छी सीटें नहीं दी, जिसके कारण हार मिली। उदाहरण के तौर पर भाजपा ने सैनी समाज को कलियर से टिकट दिया। लेकिन कलियर मुस्लिम बाहुल्य सीट है। पिछले चुनाव में तीन मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच भी वहां से भाजपा का सैनी उम्मीदवार नहीं जीत पाया। इस बार सैनी समाज गंभीरता से विचार कर रहा है और जो भी पार्टी सैनी समाज को सीट आवंटन में प्राथमिकता देगा,पूरा समाज उसका साथ देगा। हालांकि भाजपा के नेता जय भगवान सैनी ऐसा नहीं मानते और उनका कहना है कि कलियर में पिछला चुनाव बहुत अच्छा लडा गया और इस बार कलियर से जीत की पूरी संभावना है।
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आपसी फूट और जातीय समीकरण का अभाव
वहीं हरिद्वार ग्रामीण से मास्टर जगपाल सैनी का कहना है कि आपसी फूट भी बहुत बडा कारण है। इसके अलावा सैनी समाज के उम्मीदवार चुनाव के वक्त जातीय समीकरण नहीं बना पाते हैं जो हार का कारण बनता है। राम सिंह सैनी बताते हैं कि चुनाव में सभी जाति और वर्गों का सहयोग चाहिए होता है। कई बार राजनीतिक दल अच्छे उम्मीदवार नहीं उतारती जिसके कारण जीत का समीकरण नहीं बन पाता है। इसलिए अगर समाज से कोई पार्टी उम्मीदवार बनाती भी है तो वो मजबूत व्यक्ति को उम्मीदवार बनाए।
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कौन सी सीट से जीत सकते हैं सैनी उम्मीदवार
राम सिंह सैनी बताते हैं कि सैनी समाज के लिए सबसे अच्छी सीट रुडकी है, क्योंकि रुडकी से पहले भी प्रतिनिधित्व रहा है और दूसरा ये कि रुडकी प्रोगेसिव शहर है और यहां जातीय और धार्मिक समीकरण नहीं चलते हैं। अगर अच्छे उम्मीदवार को यहां से टिकट मिलता है तो यहां से जीत मिल सकती है। लक्सर का जहां तक सवाल है लक्सर से कांग्रेस टिकट देगी तो फिर बसपा वाला गणित हो जाएगा। इसलिए लक्सर कमजोर सीट है। इसके अलावा हरिद्वार ग्रामीण भी अच्छी सीट है। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मुनीष सैनी बताते हैं कि कोई ए, बी और सीट कैटिगरी नहीं हेाती है। भाजपा एक परिवार है और जहां से भी टिकट मिलेगा, उसे जीताने का काम किया जाएगा। कलियर से इस बार हमें जीत मिलने जा रही है। संजय सैनी बताते हैं कि लक्सर, रुडकी,हरिद्वार ग्रामीण और कलियर इन सीटों पर सैनी वोटों का प्रभाव है इसलिए इनमें से किसी भी सीट से कांग्रेस को सैनी समाज को उम्मीदवार बनाना चाहिए।
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