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गढ़वाल में हरिद्वार तक क्यों सिमटे हैं हरीश रावत, क्या है ‘हरिद्वार प्रेम’ के पीछे की कहानी

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विकास कुमार/बिंदिया गोस्वामी/ अतीक साबरी।
हरीश रावत की हरिद्वार में सक्रियता पिछले कुछ समय से बहुत ज्यादा बढी है और गढवाल में उनके दौरों की बात करें तो उन्होंने हरिद्वार को सबसे ज्यादा समय दिया है। खासतौर पर हरिद्वार शहर और हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र के खादर इलाके में उनका फोकस रहा है। हरिद्वार में उनकी सक्रियता का कारण क्या है और हरिद्वार प्रेम के जो हिलौरे उनके हृदय में उठ रहे हैं उनके पीछे की रणनीति क्या, इस बारे में अपने वरिष्ठ पत्रकारों से विसतार से जानने की कोशिश की है।

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हरिद्वार से लड़ सकते हैं चुनाव
वरिष्ठ पत्रकार अवनीश प्रेमी बताते हैं कि कुमाउं में हरीश रावत जब लगातार चुनाव हार रहे थे तब हरिद्वार ने ही उनको जीताकर संसद भेजा था और ये भी प्रबल संभावना है कि यदि हरीश रावत चुनाव लडे तो वो हरिद्वार जनपद की किसी सीट से चुनाव लड सकते हैं। दूसरा कारण बच्चों को स्थापित करने की चाह है। हरीश रावत अपने राजनीतिक करियर के आखिरी पडाव पर है और हर कोई चाहता है कि उनके रहते उनके बच्चों का भविष्य भी संवर जाए। हरीश रावत की सक्रियता का दूसरा कारण ये है कि हरिद्वार से अपने होनहारों को स्थापित कर जाए। वहीं तीसरा कारण ये है कि हरिद्वार चुनावी गणित के हिसाब से बेहद महत्वपूर्ण वाला जनपद है। कुमाउं में कांग्रेस बढत मिलती है तो हरिद्वार जनपद में अच्छी परफोरमेंस कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचने में मदद दे सकती हैं, इसलिए हरीश रावत का फोकस गढवाल में हरिद्वार पर ज्यादा रहता है। इसके अलावा चौथा कारण ये भी है कह सकते हैं कि गढवाल के दूसरे जनपदों में हरीश रावत को लेकर उतनी दिलचस्पी नहीं है जितनी कुमाउं और हरिद्वार में देखने को मिल जाती है। ये भी हो सकता है कि भाजपा से पुराने कांग्रेसियों की घर वापसी की संभावनाओं को देखते हुए हरीश रावत गढवाल के दूसरे जनपदों में कम दिलचस्पी दिखा रहे हो।

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हरीश रावत हरिद्वार को अपनी विरासत समझ बैठै हैं
वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि डोभाल बताते हैं कि हरिद्वार में हरीश रावत की सक्रियता जगजाहिर है और उनके चुनाव लडने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। उनकी बेटी अनुपमा रावत और बेटा विरेंद्र रावत भी हरिद्वार देहात में सक्रिय हैं। हरीश रावत हरिद्वार से सांसद रहे हैं और उनकी पत्नी भी एक चुनाव लड चुकी है। मुझे लगता है ​हरिद्वार को वो अपनी राजनीतिक विरासत मान बैठे हैं जो गलत साबित हो सकता है। गढवाल के दूसरे जनपदों में जाने के कई अन्य कारण हो सकते हैं लेकिन हरिद्वार में ज्यादा सक्रियता नुकसान भी कर सकती है।

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