चंद्रशेखर जोशी।
हरिद्वार शहर से कूडा उठाने वाली जिस कंपनी पर शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक और कांग्रेस की मेयर अनीता शर्मा तमाम कोताहियों के बाद भी मेहरबान हैं, उस केआरएल की जानबूझकर की गई लापरवाही के कारण सराय गांव का पानी दूषित होने के कगार पर है। यही नहीं जमीन पर सेनेटेरी लैंडफिल बनाए बिना सीधे फेंके गए कूडे से निगम की करोडों रुपए की उपजाउ भूमि बंजर हो गई है। निगम ने अपनी उपजाउ 17 एकड जमीन केआरएल को 2012 में हैंडओवर की थी। ताकि शहर से निकलने वाले कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण किया जा सके।
लेकिन केआरएल ने तमाम नियमों को ताक पर रख कचरे को सीधे जमीन पर फेंकना शुरू कर दिया। तब से लेकर अब तक जमीन के अधिकतर हिस्से पर कचरा बिना निस्तारण के डाला जाता रहा। जिससे ये उपजाउ भूमि पूरी तरह बंजर हो चुकी है। अब ये खेती के लिए लायक नहीं रही।
नेशनल प्रोउक्टिविटी काउंसिल के क्षेत्रीय निदेशक रामेश्वर दूबे ने निगम के मुख्य नगर आयुक्त उदय सिंह राणा के साथ प्रेस वार्ता के दौरान बताया कि अगर कचरे का निस्तारण किए बिना सीधे कचरे को भूमि पर डाला जाए तो जमीन बंजर हो जाती है। यही नहीं वहां का भूगर्भीय जल भी दूषित हो जाता है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा कचरे से निकलने वाली जहरीली गैस से पर्यावरण भी दूषित होता है। जबकि, त्वचा से जुडी बिमारियां भी लोगों को होती हैं।
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मंत्री मदन कौशिक और मेयर अनीता शर्मा हैं मेहरबान
हालांकि केआरएल की तमाम कोताहियांं जगजाहिर हैं। बावजूद इसके शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक और मेयर अनीता शर्मा दोनों ने आज तक केआरएल पर कार्रवाई के नाम पर चुप्पी ही साधे रखी। ठोस कार्रवाई के बजाए केआरएल की कमियों पर मिलकर पर्दा डाला जाता रहा है। अब जबकि भूमि बंजर हो गई। इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। हालांकि एसएनए संजय कुमार ने बताया कि केआरएल पर जुर्माना लगाने की कार्रवाई की गई है। साथ ही आखिरी अल्टीमेटम भी दिया गया है। जल्द ही कचरे को अलग—अलग कर कचरे का निस्तारण किया जाएगा।
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क्यों हुई समस्या
असल में शहर से निकलने वाले कचरे का निस्तारण करने के लिए सबसे पहले घरों से ही गीले और सूखे कचरे व खतरनाक श्रेणी के कचरे को अलग—अलग किया जाना चाहिए। लेकिन निगम और केआरएल दोनों इस काम में नाकाम रहे। निगम और केआरएल इसके लिए जनता को दोष देते रहे हैं। लेकिन कचरे को घरों से अलग—अलग ले जाने के लिए केआरएल के पास खुद ही कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में अपनी कमियां छुपाने के लिए केआरएल और निगम जनता के अशिक्षित होने की बात का दावा करती है, जो कि सही नहीं है।
अमर उजाला के वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि डोभाल बताते हैं कि केआरएल पर कार्रवाई के बजाए लगातार उसकी नाकामियों को छुपाया जा रहा है। ये क्यों हो रहा है सब जानते हैं। असल में निगम और केआरएल को कचरा प्रबंधन के लिए मिलकर काम करना चाहिए था। लेकिन दोनों कमियों को दूर करने के बजाए उन पर पर्दा डालने के काम में लगे हुए हैं। इससे कुछ भी हासिल नहीं हेाने वाला हैं।
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क्या कहती है केआरएल
केआरएल के निदेशक सुखबीर सिंह ढींढसा ने बताया कि हर समस्या के लिए हमें दोष देना ठीक नहीं है। सरकार ने अभी तक प्लांट की क्षमता बढाने या लैंड फिल बनाने के लिए पैसा नहीं दिया। ऐसे में हम क्या करें। हमारे पास सीमित संसाधन हैं और कचरा बडी मात्रा में निकलता है। सरकार केा हमारी समस्याओं पर भी ध्यान देना चाहिए।
एक दुसरे पर आरोप लगाना शुरू हो गया और समय खिच जाएगा, तब तक आम जनता भूल जाएगी। समस्या का कोई निष्कर्श नही निकलेगा। दोनो दल खुश। जनता परेशान, प्रदुषण से अनेक बिमारियों के चपेटे में। कितना बदल गया इंसान, कुच सिक्कों की चमक से।