विकास कुमार/ऋषभ चौहान।
धामी सरकार में दूसरे दर्जे के मंत्री रहे स्वामी यतीश्वरानंद भले ही चुनाव हार गए हों लेकिन उन्हें 2017 से ज्यादा वोट इस बार मिले हैं। यही नहीं कुल 12 राउंड में से सात राउंड स्वामी यतीश्वरानंद ने जीते हैं। साल 2017 में स्वामी यतीश्वरानंद को 44964 वोट मिले थे जबकि हरीश रावत को 32686 वोट मिले। वहीं 2022 के चुनाव में स्वामी यतीश्वरानंद 45556 वोट हासिल करने में कामयाब हो गए जबकि कांग्रेस की अनुपमा रावत को 50028 वोट मिले। कांग्रेस की अनुपमा रावत की जीत के कारण क्या रहे और स्वामी किन वजहों के चलते हार गए। बता रहें हैं वरिष्ठ पत्रकार
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बसपा की कमजोरी का फायदा कांग्रेस को मिला
वरिष्ठ पत्रकार रतनमणी डोभाल बताते हैं कि हरिद्वार ग्रामीण पर 2017 में त्रिकोणीय मुकाबला बना था। तब बसपा के मुकर्रम अंसारी करीब 18 हजार वोट लेने में कामयाब रहे और हरीश रावत 32 हजार पर सिमट गए थे। इस चुनाव में बसपा से युनूस अंसारी आए लेकिन वो अपना चुनाव खडा नहीं कर पाए। युनूस को ना तो बसपा का कैडर वोट मिला और ना ही मुसलमान वोट बसपा के पास गया। जबकि मुसिलम और दलित वोट बैंक सीधे तौर पर कांग्रेस पर शिफ्ट हो गया। इसका सीधा फायदा कांग्रेस केा मिला और कांग्रेस भाजपा के गढ में पचास हजार वोट तक पहुंचने में कामयाब हो गई। सीधे तौर पर कहें तो कांग्रेस की जीत में दलित और मुस्लिम वोटरों का अहम योगदान है। जबकि ये माना जा रहा था कि कांग्रेस को पर्वतीय, ठाकुर और पिछडी जातियों का बडा समर्थन मिल रहा है। लेकिन ये वोट बडी संख्या में भाजपा के पास ही रहा। यही कारण है कि भाजपा के स्वामी पहली बार से ज्यादा वोट लेने में कामयाब हो गए। वहीं वरिष्ठ पत्रकार अश्वनी अरोड़ा बताते हैं कि मेरा मानना है कि पूरे हरिद्वार देहात क्षेत्र में बसपा का कैडर वोट कांग्रेस पर शिफ्ट हो गया। जहां बसपा के मजबूत प्रत्याशी थे वहां वो उन पर टिका रहा। स्वामी यतीश्वरानंद इस बात को जानते थे इसीलिए उन्होंने भरपूर मेहनत की और अपना वोट पहले से ज्यादा बढाया लेकिन वो उतना नहीं बढ पाया जितनी उम्मीद थी।
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