Haridwar rawat anupma rawat and virednra rawat who will fight elections from haridwar

क्या हरीश रावत एंड फेमिली हरिद्वार में कांग्रेस की लोकल लीडरशिप को खत्म करने पर तुली है

बिंदिया गोस्वामी/ विकास कुमार/ अतीक साबरी।
विधानसभा चुनाव में बहुत कम समय रह गया है और हरिद्वार की तीन प्रमुख विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के स्थानीय नेता पसोपेश की स्थिति में है कि आखिर चुनाव लडने की तैयारी शुरु करें की नहीं, आगे बढें कि नहीं। कहीं ऐसा ना हो कि सारा तामझाम रखा रह जाए और चुनावी मौसम से बाहर निकलकर सीधे हरिद्वार ग्रामीण, लक्सर और खानपुर विधानसभा में हरीश रावत परिवार की ​विरासत की तख्ती हाथ में लिए घूमने वाले विरेंद्र रावत और अनुपमा रावत का प्यार हरीश रावत पर भारी पड जाए और पार्टी कार्यकर्ताओं की खून—पसीने की मेहनत धरी की धरी रह जाए। या हरीश रावत का मन कुमाउं की वादियों से निकलकर फिर से हरिद्वार ग्रामीण में अवैध खनन की ट्रकों और ट्रॉलियों से बनी धूल—भरी सडकों पर आ जाए। लिहाजा, इन तीनों ही सीटों पर कांग्रेस के स्थानीय नेता पसोपेश में है और यही पसोपेश कांग्रेस को चुनाव में भारी पड सकती है।

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हरीश रावत किस दुविधा में हैं, क्या कहते हैं हरीश रावत
वरिष्ठ पत्रकार अवनीश प्रेमी बताते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि हरिद्वार ग्रामीण, लक्सर और खानपुर सीटों पर स्थानीय लीडरशिप आत्मविश्वास से आगे नहीं बढ पा रही है। उसका कारण खुद हरीश रावत, उनके बेटे विरेंद्र रावत और बेटी अनुपमा रावत हैं। ये कभी खानपुर की दौड लगा रहे हैं तो कभी लक्सर की तो कभी हरिद्वार ग्रामीण में खूंटा गाड देते हैं। खुद हरीश रावत दुविधा में है कि परिवार में उपजे इस संघर्ष का अंत किस तरह करें। ये भी है कि वो खुद हरिद्वार आते हैं या फिर स्थानीय नेताओं को आगे करते हैं। चुनाव सर पर है और अभी कुछ भी साफ नहीं है। इस स्थिति में माहौल मुफीद होने के बाद भी कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।

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कोई भी बच्चा चुनाव लडा तो विद्रोह होगा
वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि डोभाल बताते हैं कि विरेंद्र रावत और अनुपमा रावत में से किसी को भी टिकट दिया तो स्थानीय कार्यकर्ता इसके पचा नहीं पाएंगे और दोनों का इतना कद और जलवा नहीं है कि वो अपने बूते कुछ कर पाए। ऐसे में विरेंद्र रावत और अनुपमा रावत से बात नहीं बन पाएगी। हरीश रावत को ये गलती करनी भी नहीं चाहिए। दूसरी बात ये सही है कि स्थानीय लीडरशिप हरीश रावत एंड फेमिली की सक्रियता के कारण खडी नहीं हो पा रही है। चुनाव की तैयारी में पैसा लगता है कि और चुनावी तैयारी में खामखां कोई अपने दस—बीस लाख रुपए नहीं खर्च करेगा। हरीश रावत खुद आते हैं तो बात कुछ ओर होगी लेकिन मेरी राय में हरीश रावत को खुद भी इससे बचना चाहिए और संभावित स्थानीय नेताओं को जल्द से जल्द तैयारी का इशारा कर देना चाहिए।

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हरीश रावत के लिए चुनौती भरा समय
वहीं वरिष्ठ पत्रकार आदेश त्यागी बताते हैं उनकी कई स्थानीय नेताओं से बात होती है और वो अक्सर यही बात दोहराते हैं कि पहले से स्थिति साफ होनी जरुरी है। हालांकि ये भी सही है कि कांग्रेस में आखिरी तक असमं​जस की स्थिति बनी रहती है। हरीश रावत की बात कुछ ओर है लेकिन अनुपमा रावत और विरेंद्र रावत को जनता पसंद नहीं करती है। हरीश रावत के लिए ये चुनौतीपूर्ण होगा कि अपने दोनों बच्चों को कैसे मना करें और अगर नहीं कर पाते हैं तो ये कांग्रेस के लिए आत्मघाती कदम साबित होगा।

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