अतीक साबरी, कलियर।
आल इंडिया मजलिस—ए—इत्तेहादुल मुसलमीन यानी बेरिस्टर असदुद्दीन औवेसी बुधवार को हरिद्वार के कलियर शरीफ में आ रहे हैं। यहां वो कलयिर शरीफ में जियारत के बाद उत्तराखण्ड में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी पदाधिकारियों से चर्चा करेंगे। ओवैसी की पार्टी एमआईएम उत्तराखण्ड की 22 सीटों पर चुनाव लडने की तैयारी कर रही है, इनमें अधिकतर सीटें हरिद्वर देहरादून और उधम सिंह नगर जनपद की मुस्लिम बाहुल्य वाली सीटें हैं। कल पदाधिकारियों से चर्चा के बाद इन सीटों पर प्रभारी के नामों का भी ऐलान हो सकता है। वहीं एमआईएम का सबसे ज्यादा फोकस हरिद्वार जनपद में हैं जहां मुसिलम वोटरों का कई विधानसभा सीटों पर सीधा प्रभाव है।
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हरिद्वार की इन सीटों पर लडेंगे चुनाव
प्रदेश अध्यक्ष डा. नैयर काजमी ने बताया कि एमआईएम के हरिद्वार में करीब पचास हजार मेंबर हैं जिसमें मुसलमानों के अलावा दलित, पिछडे और अगडे सभी शामिल हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता शाहनवाज सिद्दीकी ने बताया कि हरिद्वार में पार्टी का फोकस हरिद्वार ग्रामीण, लक्सर, ज्वालापुर, रानीपुर, भगवानपुर, कलियर, मंगलौर और झबरेडा विधानसभा सीटों पर हैं। यहां पार्टी कार्यकर्ता तैयारी कर रहे हैं और पार्टी का जनाधार लगातार बढ़ रहा है।
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ओवैसी की पार्टी के चुनाव लडने पर क्या कहते हैं मुस्लिम मतदाता
हरिद्वार देहात क्षेत्र के रहने वाले तनवीर खान बताते हैं कि मुसलमानों के सामने सारे विकल्प खुले हैं। खासतौर पर युवा खुद को कांग्रेस का वोट बैंक कहलाना पसंद नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि मुस्लिम कांग्रेस के अलावा, बसपा, आजाद समाज पार्टी और भीम आर्मी का भी हिस्सा हैं। यहां तक कि भाजपा के समर्थक मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी बढी है। हालांकि मुसिलम मतदाताओं को सिर्फ वोट बैंक ही समझा जाता है। ओवैसी जिस तरीके से मुसलमानों के मुद्दों पर बोल रहे हैं उससे उनकी लोकप्रियता मुसलमानों में ज्यादा है। ये लोकप्रियता वोटों में तब्दील होगी या नहीं, ये तो चुनाव के बाद ही पता लग पाएगा।
आजम अली बताते हैं कि कांग्रेस, बसपा और दीगर पार्टी के उम्मीदवार मुसलमानों को सिर्फ गिनती से ज्यादा कुछ नहीं समझते। आपने कहते हुए सुना होगा कि मुसलमान किसी सीट पर अगर 25 हजार हैं तो वो सारे कांग्रेस या बसपा या सपा के नाम पर मिल जाएंगे। अब ऐसा नहीं है कई अपने निजी फायदों के लिए या पर्सनल संबंधों के कारण भाजपा के उम्मीदवारों को भी वोट देते हैं। जहां तक ओवैसी की पार्टी का सवाल है तो ये काफी सकारात्मक है और उम्मीदवार अच्छे रहे तो मुसलमानों के वोटों का एक हिस्सा एमआईएम को चला जाएगा।
जुबैर अंसारी ने कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि राजनीति में सक्रिय भागीदारी से मुसलमानों को बहुत कुछ फायदा होेगा। अभी तक तो ऐसा नहीं हुआ है, जिस तरह से राजनीतिक दलों ने मुसलमानों का वोट बैंक के तौर पर प्रयोग किया है, उससे अगर मुसलमानों के हालात बदलने होते तो अब तक बदल चुके होते। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और एक अच्छे जीवन की उम्मीद में मुसलमान और ज्यादा पिछडते चले जा रहे हैं। अब ओवैसी साहब आए या फिर कोई अन्य। राजनीति से बेहतर मुसलमनों को सामाजिक बदलाव और तरक्की पर ध्यान देने की जरुरत है और उसका एक ही जरिय है शिक्षा। हां, इसमें कोई दो राय नहीं कि ओवैसी के फैन भी कम नहीं है।
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