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1857 गदर: लालकिले की सबसे लाडली शहजादी की दर्दभरी कहानी, दर्दनाक थी मौत, देखें वीडियो


विकास कुमार/अतीक साबरी।
सोने और महंगी जरीबूटों से सजे महलों, शामियानों और मखमली बिस्तरों पर जिंदगी गुजर करने वाली 15 साल की गुलबानो लालकिले की सबसे लाडली शहजादी थी। 1857 के गदर से बेखबर मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की सबसे लाडली शहजादी गुलबानों को ये भ्रम भी नहीं था कि जल्द ही वो लालकिले से बेदखल होनी वाली है और उसको बहुत ही तंगहाली में जीने को मजबूर होना पडेगा। शहजादी गुलबानो का आखिरी वक्त इतना दर्दनाक था कि तीनों दिनों तक वो भूखी प्यासी रही, जमीन पर ईंट रखकर सोई और फटे कंबल में अपने पिता की कब्र के पास अपनी बेबसी पर रोती हुई चल बसी।


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हालांकि 1857 से पहले ही गुलबानो के वालिद मिर्जा दाराबख्त बहादुर दुनिया से चल बसे थे। मिर्जा दाराबख्त आखिरी मुगल बादशाह के बेटे और वलीअहद यानी युवराज थे। पिता की मौत के बाद बहादुर शाह जफर की भी सबसे लाडली गुलबानो ही थी और उसको पूरे लाल किले में कोई कमी पेशी नहीं आने दी जाती थी। गुलबानो के पास नौकर चाकर थे और सभी तरह की सुख सुविधाएं थी।
गुलबानो हर महीने अपनी मां के साथ अपने पिता मिर्जा दाराबख्त बहादुर की कब्र पर जाती थी जो दरगाह हजरत मखदूम नसीरुददीन चिराग दिल्ली में मौजूद थी। गुलबानो अपने बाप की कब्र से लिपट कर रोती और कहती ” अब्बा हमको भी अपने पास लिटाकर सुलालो, हमारा जी तुम बिन बहुत घबराता है” गुलबानो अपने पिता की भी बहुत लाडली थी और जब गुलबानो 12 बरस की थी तो उसके पिता चल बसे थे।
खैर पिता की मौत के बाद अपनी पोती के लिए प्यार बादशाह बहादुर शाह जफर में और ज्यादा बढ गया था। हालांकि, तब पूरे लालकिले में बहादुर शाह जफर की बेगम जीनत महल और उनके बेटे जवान बख्त की खूब चलती थी लेकिन इन दोनों के आगे गुलबानो के प्रति बादशाह का लाड प्यार भारी पडता था।
1857 गदर में बागियों के हारने के बाद लालकिले को अंग्रेजों ने घेर लिया था और अंग्रेजी फौजों के लालकिले में घुसने के डर से बादशाह और उनके खानदान के सभी लोग किला छोड रहे थे। जिसको जहां जान पड रहा था दौड रहा था। शहजादों को ढूढ ढूढ कर अंग्रेज फौज मार रही थी और महलों की शानो शौकत में रहने वाली शहजादियां भूखे प्यासे बेवारिसों की मानिंद भटक रही थी।
मशहूर इतिहाकसरकार और लेखकर ख्वाजा हसन निजामी ने 1857 के बाद लालकिले से निकलकर गुरबत में जी रही शहजादियों की कहानियां उनसे बात कर अपनी किताब बेगमात के आंसू में लिखी है। गुलबानो का जिक्र करते हुए ख्वाजा हसन निजामी लिखते हैं —— ”दरगाह हजरत चिराग दिल्ली के एक कोने में अच्छी खासी सूरत वाली औरत फटा हुआ कंबल ओढ़े रात के वक्त हाय हाय कर रही थी। सर्दी की बारिश धुआंधार हो रही थी तेज हवा के झोंकों से बौछार उस जगह को भी गीला कर रही थी जहां उस औरत का बिस्तर था यह औरत बहुत बीमार थी।
पसली के दर्द बुखार और बेकसी में अकेली पड़ी तड़पती थी बुखार की बेहोशी में उसने आवाज दी गुलबदन ऐ गुलबदन मुरदार कहां मर गई जल्दी आओ और मुझको दो शाला ओढा दें, देखो बौछाड अंदर आ रही है पर्दा छोड़ दे। रोशन तू ही आ। गुलबदन तो कहीं गायब हो गई मेरे पास कोयलों की अंगीठी ला। पसली पर तेल मल। अरे, दर्द से भरी सांस रुक जाती है।
जब कोई इस आवाज पर भी उसके पास नहीं आया तो उसने कंबल चेहरे से हटाकर चारों तरफ देखा। अंधेरे दालान में खाक के बिछौने पर अकेली पड़ी थी। चारों तरफ घोर अंधेरा छाया हुआ था। बारिश हो रही थी। बिजली चमकती तो एक सफेद कब्र की झलक दिखाई देती थी। जो उसके बाप मिर्जा दाराबख्त बहादुर की थी, जहां वो अक्सर आया करती थी।
यह हालात देखकर उस औरत ने चीख मारी और कहा, ”बाबा, मैं तुम्हारी गुलबानो हूं। देखें अकेली हूं। उठो, मुझे बुखार चढ रहा है। मेरी पसली में जोरो का दर्द हो रहा है। मुझे सर्दी लग रही है। मेरे पास इस फटे कंबल के सिवा ओढने के लिए कुछ नहीं है। मेरी अम्मा मुझसे बिछड़ गई है। मैं महलों से निकाल दी गई हूं। बाबा अपनी कब्र में मुझको बुला लो। मुझे डर लगता है। कफन से मुंह निकालो और मुझको देखो। मैंने परसों से कुछ नहीं खाया। मेरे बदन में गीली जमीन के कंकर चुभते हैं। मैं ईंट पर सिर रखे लेटी हूं।
”मेरा शामियाना क्या हुआ, मेरा दोशाला कहां गया, मेरी सेज किधर गई, अब्बा—अब्बा, उठो जी कब तक सोएंगे, हाय दर्द! उफ! कैसे सांस लूं। यह कहते कहते वो बेहोश हो गई। और उसने देखा कि वो मर गई है और उसके वालिद मिर्जा दाराबख्त उसको कब्र में उतार रहें हैं और रो—रो कर कहते हैं, ”ये इस बेचारी का मिटटी का आशियाना है।”
तभी उसकी आंख खुल गई और बेचारी गुलबानो एडिया रगडने लगी। मरने का वक्त सिर पर था और कहती थी ”लो साहिब अब मैं मरती हूं..कौन मेरे गले में शरबत टपकाएगा। कौन मुझे आखिरी वक्त में यासीन शरीफ सुनाएगा और कौन अपनी गोद में मेरा सिर रखेगा। अल्लाह तेरे सिवा मेरा कोई नहीं तू एक है।”
शहजादी मर गई और दूसरे दिन गरीबों के कब्रिस्तान में गड गई और वही उसका अबदी आशियाना था जिसमें वक कयामत तक सोती रहेगी।

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