केडी।
हरिद्वार पुलिस के ढांचे में काबिल नहीं बल्कि सिफारिश चेहरों को पूरी तवज्जो दी जा रही है। देहरादून के सियासी एंगल से कोतवाल एसओ की कुर्सी तय हो रही है या फिर आला अफसर अपने चहेतों को चार्ज दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। अब जब सिफारिशी कोतवाली एसओ तैनात होंगे, तो आमजन की सुरक्षा की उम्मीद करना पूरी तरह से बेमानी है। हरिद्वार के एक खनन बाहुल्य क्षेत्र में तैनात एक थानेदार तो आजकल यह कह रहा है कि उसका कोई कुछ बाल भी बांका नहीं कर सकता है, क्योंकि उसकी पहुंच सीधे सबसे ऊपर वाले साहब से है, पहले के भी साहब उसके करीबी थे और अब भी उसका सिक्का पूरी तरह से चल रहा है। हैरानी की बात यह है कि इस थानेदार की एक बार बर्खास्तगी तक हो चुकी है और उसके नकारापन का आलम उसके लाइन हाजिर के रेकार्ड से लगाया जा सकता है लेकिन उसकी पहुंचे बड़े बाबूसाहब तक है इसलिए उसे चार्ज तो मिलना ही है। वैसे आला अफसर कार्यकुशलता का दम ठोकते है। यह थानेदार ही नहीं बल्कि एक इंस्पेक्टर तो आमद भी नहीं दर्ज कराई थी, उसके चार्ज का आदेश पहुंचने से पहले ही जारी हो गयाथा।
एक दूसरे थाने के थानेदार भी सीधे पैराशूट से यहां लैंड हुए थे, उनकी तैनाती भी एक महकमे के एक बड़े साहब की कृपा से हुई थी। थानेदार साहब को बिलकुल भी शहर के भौगोलिक परिवेश का ज्ञान नहीं है लेकिन उनकी कुर्सी पहले से ही तय थी और आते ही वह विराजमान हो गए।
ज्वालापुर को भी लावारिस ही मान लिया गया है। रोजाना कुछ न कुछ घटित हो रहा है, पर पुलिस उसके खुलासे की बजाय छुपाने में जुटी है।
अपराध नियंत्रण में हरिद्वार पुलिस की कमर ही टूटकर रह गई है। नए मुख्यमंत्री को जिले की तरह ध्यान देना होगा, वरना अपराधी तांडव मचाते ही रहेंगे।