करण खुराना/विकास कुमार।
कोरोना के दौर में चुनाव प्रचार के लिए सभी राजनीतिक दलों के प्रत्याशी सोशल मीडिया के जरिए अपना चुनाव प्रचार कर रहे हैं। इसमें फेसबुक सबसे सशक्त माध्यम है। प्रत्याशियों ने सोशल मीडिया प्रबंधन के लिए प्रोफेशनल लोगों को हायर किया है। लेकिन, नेताओं को भी नहीं पता कि वो फेसबुक, इंस्टाग्राम प्रोमोशन के चक्कर में कैसे बेवकूफ बन रहे हैं। सस्ते के चक्कर में नेताओं को फर्जी लाइक्स, रीच और व्यूज दिखाकर ठगा जा रहा है। यही नहीं कई स्थानीय पोर्टल और यूट्यूब व फेसबुक पर चैनल चलाने वाले पत्रकार भी हजारों—लाखों व्यूज दिखाकर प्रत्याशियों को बेवकूफ बनाकर उनका उल्लू काट रहे हैं और नेताजी कटवा भी रहे हैं। क्या होता है फर्जी प्रमोशन इस बारे में हमने डिजीटल एक्सपर्ट से बात की।
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ऐसे लाते हैं फर्जी व्यूज और लाइक
हरिद्वार स्थित वेब ड्रिल टेक्नोलोजीज के मैनेजर और डिजीटल मार्केटिंग एक्सपर्ट शाहनवाज खान ने बताया कि सोशल मीडिया पर दो तरीके से प्रमोशन होता है। आर्गेनिक और दूसरा इनआर्गेनिक। इसे आसान भाषा में ऐसे समझिए कि एक बिना पैसों वाला और दूसरे जिसके लिए फेसबुक ने पैसे निर्धारित किए हैं जो कोई भी देख सकता है। वहीं एक अलग तरीके का भी प्रचार किया जा रहा है जो पूरी तरह फर्जी होता है। इंटरनेट पर कई तरह के टूल और वेबसाइट उपलब्ध हैं जो बिल्कुल मुफ्त में बडी संख्या में लाइक और व्यूज लाने का काम करते हैं। लेकिन, इनकी कोई प्रमाणिकता नहीं होती है ये सब फर्जीवाडा होता है। इन्हें आटो लाइकर और आटो व्यूज भी कहा जाता है। जिसे गूगल पर डालकर आसानी से सर्च किया जा सकता है। ये मुफ्त होता है और इसका प्रयोग करके क्लाइंट को बहुत कम पैसे में प्रमोशन दिया जाता है। क्लाइंट सस्ते के चक्कर में फंस जाता है और बाद में उसे पता लगता है कि वो ठगा जा चुका है।
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चुनाव में नेताओं के पास घूम रहे कई लोग
वहीं चुनाव में नेताओं के पास सोशल मीडिया प्रमोशन और दूसरे कामों के लिए कंपनियां घूम रही है। अधिकतर प्रत्याशियों और नेताओं ने इन्हें हायर भी कर लिया है। वरिष्ठ पत्रकार राजेश शर्मा ने बताया कि चुनाव में नेता व्यस्त रहते हैं और उनके पास इतने तकनीक को समझने वाले लोग भी नहीं होते हैं। ऐसे में सोशल मीडिया पर ठगे जाने का खतरा ज्यादा होता है।
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