अतीक साबरी:-
उत्तराखंड के हरिद्वार जनपद में स्थित पिरान कलियर दरगाह, सूफी संत हज़रत साबिर पाक का वह पवित्र स्थल है, जो सदियों से भारत की सांप्रदायिक सौहार्द, गंगा-जमुनी तहज़ीब और राष्ट्रीय एकता का सशक्त प्रतीक रहा है। देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु—हर जाति, धर्म और भाषा की सीमाओं को पार कर—यहाँ सिर झुकाने आते हैं।
मगर, बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आज यह राष्ट्रीय आस्था का केंद्र भ्रष्टाचार, अव्यवस्था और प्रशासनिक निकम्मेपन का पर्याय बन चुका है। दरगाह की पवित्रता पर भ्रष्टाचार का ‘काला साया’ मंडरा रहा है, जिससे आम जनता और श्रद्धालु दोनों हताश हैं।
फंड्स का ‘गुमशुदा’ होना और सुविधाओं का घोर अभाव-
दरगाह समिति, जिस पर इस पवित्र स्थल के संचालन, विकास और प्रबंधन की जिम्मेदारी है, वह वर्षों से गंभीर आरोपों के घेरे में है। यह कोई इक्का-दुक्का घटना नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित लापरवाही और गहरे भ्रष्टाचार का परिणाम है:
बजट में गड़बड़ियां:-
लाखों-करोड़ों का बजट हर साल आवंटित होता है, लेकिन इसका उपयोग धरातल पर दिखाई नहीं देता।
जनसुविधाओं की उपेक्षा:-
तीर्थयात्रियों के लिए मूलभूत सुविधाएं, जैसे गंदगी मुक्त परिसर, सुरक्षित पेयजल, व्यवस्थित पार्किंग, और सुरक्षा आज भी नदारद हैं।
पारदर्शिता की कमी:-
दरगाह के आय-व्यय और आवंटन प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं है, जिससे अनियमितताओं को बल मिलता है।
स्थानीय कारोबारियों का उत्पीड़न:-
प्रबंधन पर स्थानीय छोटे कारोबारियों को परेशान करने और उनसे अवैध वसूली के भी आरोप हैं।
बार-बार शिकायतों के बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं? यह ‘चुप्पी’ किस संरक्षण का संकेत?
इस पूरे प्रकरण का सबसे बड़ा और चिंताजनक सवाल यह है कि शिकायतें बार-बार उठने, मीडिया में खबरें आने और जनता के चीखने के बाद भी निर्णायक कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?
सवाल:
लाखों का बजट कहाँ जा रहा है? जांचें होती भी हैं तो नतीजा शून्य क्यों रहता है?
प्रशासन की यह रहस्यमयी चुप्पी क्या किसी उच्च स्तरीय राजनीतिक संरक्षण का संकेत है?
’जीरो टॉलरेंस’ का दावा करने वाली सरकार और स्थानीय प्रशासन इस मामले में आँख मूँदकर बैठे हैं। पिरान कलियर की प्रशासनिक विफलता केवल हरिद्वार जनपद का मामला नहीं है; यह सीधे तौर पर देश की विविधता और एकता की छवि को धक्का पहुंचाता है।
अब समय है— निर्णायक एक्शन का!
मात्र जांच बैठाने या समिति के प्रतीकात्मक बदलाव से अब काम नहीं चलेगा। इस राष्ट्रीय महत्व के केंद्र की गरिमा को बहाल करने के लिए ठोस और निर्णायक कदम उठाए जाने आवश्यक हैं:
स्वतंत्र, उच्च स्तरीय जांच:
एक समयबद्ध और स्वतंत्र एजेंसी से संपूर्ण मामले की जांच करवाई जाए।
संपूर्ण ऑडिट सार्वजनिक: दरगाह के पिछले पाँच वर्षों की ऑडिट रिपोर्ट तुरंत सार्वजनिक की जाए।
कड़ी कानूनी कार्रवाई: जांच में दोषी पाए जाने वाले, चाहे वे कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों, उन पर त्वरित और कड़ी कानूनी कार्रवाई हो।
जन भागीदारी सुनिश्चित: दरगाह के संचालन और प्रबंधन में स्थानीय जनता और निष्पक्ष धार्मिक प्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
पिरान कलियर जैसे पवित्र स्थलों को बचाने के लिए केवल श्रद्धा ही नहीं, बल्कि ईमानदार, पारदर्शी और उत्तरदायी प्रशासन की भी नितांत आवश्यकता है। अन्यथा, वह दिन दूर नहीं जब लोग आस्था के इस केंद्र से भी मोहभंग करने लगेंगे—और तब नुकसान सिर्फ एक दरगाह का नहीं, हमारी साझा संस्कृति और राष्ट्र की आत्मा का होगा।



