विकास कुमार।
23 जून 2012 की सुबह करीब पौने छह बजे शमशाद निवासी पथरी ने पुलिस को सूचना दी कि एक शव विनोद पुत्र लाल सिंह के खेत में पडा है। पुलिस ने खून में लथ—पथ पडे करीब 22 साल के युवक को बाहर निकाला जिसकी शिनाख्त नहीं हो पाई। 25 जून को युवक की शर्ट में लगे टैग के जरिए उसके परिवार को तलाश गया। युवक की शिनाख्त सन्नी सिंह पुत्र हरपाल निवासी गांव किशनपुर बराल जिला बागपत, उत्तर प्रदेश के तौर पर हुई। ये साफ था कि सन्नी की हत्या हुई है लेकिन हत्या किसने की पुलिस को अब इस पहेली को सुलझाना था। घटना की जांच पथरी के तब के एसओ शिशुपाल सिंह नेगी कर रहे थे जो इन दिनों ऋषिकेश कोतवाली में तैनात हैं।
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हरिद्वार में महिला मित्र से मिलने आया था सन्नी सिंह
26 जून को सन्नी सिंह के पिता हरपाल और छोटे भाई उमेश कुमार पथरी थाने पहुंचे और एक तहरीर दी जिसमें उन्होंने बताया कि उनका पुत्र सन्नी सिंह 21 जून को घर में हरिद्वार के एक गांव की रहने वाली सिमरन (बदला हुआ नाम )से मिलने को कहकर गया था। 22 जून को रात करीब 11.30 बजे सनी का फोन उसके छोटे बेटे उमेश कुमार के पास आया, जिसमें उसने घबराते हुए कुछ कहने की कोशिश की, फिर उसका फोन बंद हो गया। हरपाल का आरोप था कि सिमरन के भाई मिंटू व उनके परिवार वालों सनी की पीट—पीट कर हत्या की है।
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क्या हुआ था 22 जून की रात को, सिमरन का कबूलनामा
जांच अधिकारी शिशुपाल सिंह नेगी की तफ्तीश के मुताबिक सिमरन (बदला हुआ नाम ) शादीशुदा और तीन बच्चों की मां थी जो अपने पति के साथ ऋषिकेश में रहती थी। सन्नी की सिमरन से बातचीत एक मिस कॉल लगने के बाद हुई थी जिसके बाद दोनों में अक्सर बातें होती थी। नौ जनवरी 2012 को सिमरन अपनी छोटी बेटी को ऋषिकेश से हरिद्वार के लिए निकली जहां सन्नी उसे अपनी कार में अपने घर किशनपुर बिराल बागपत ले गया। सिमरन सन्नी के घर करीब डेढ महीना रही जहां सन्नी के घरवालों ने दोनों को समझाया लेकिन वो नहीं माने। इस बीच सिमरन की गुमशुदा होने के बाद ऋषिकेश पुलिस सिमरन की तलाश में 28 फरवरी को बागपत पहुंची और तीनों को ऋषिकेश ले आई जहां उन्हें कोर्ट में पेश किया गया। सन्नी को जेल भेज दिया गया जबकि सिमरन अपने मायके बहादराबाद आ गई।
जेल से छूटने के बाद सन्नी दोबारा सिमरन से बातें करने लगा और इस बीच 22 जून की रात सन्नी ने सिमरन को फोन किया कि वो उससे मिलने आ रहा है, सिमरन ने मना किया लेकिन वो नहीं माना। ये बात सिमरन के भाई मिंटू को पता लग गई। हालांकि, सिमरन सन्नी की बात को मजाक समझ कर सो गई लेकिन करीब 11.30 बजे घर में शोर—शराबे से उसकी नींद खुली। सिमरन ने देखा भाई मिन्टू व उसके साथी प्रदीप उर्फ जेजी, प्रवीन, मनोज, पंकज सन्नी को पीट रहे थे। सिमरन ने उन्हें रोकने का प्रयास किया तो मिंटू ने सिमरन को भी पीटना शुरु कर दिया। सन्नी को बुरी तरह पीटा गया जिससे उसकी मौत हो गई, वो जान बख्सने की गुहार लगाता रहा और फिर उसकी लाश को मोटरसाइकिल पर फेंक कर आए थे।
चूंकि पुलिस को दिया गया बयान कोर्ट में कोई मायने नहीं रखता है इसलिए पुलिस ने सिमरन के सीआरपीसी की धारा 164 के बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराए, जिसमें भी सिमरन (बदला हुआ नाम ) ने यही कहानी बताई। वहीं 27 जून को पुलिस ने मिंटू को गिरफ्तार किया जिसने पूछताछ में यही किस्सा बयान किया। पुलिस ने अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार किया और मारपीट के लिए प्रयोग किए गए लाठी डंडो और बेल्ट व मोटरसाइकिल को बरामद किया गया और इसमें चार्जशीट कोर्ट में पेश की गई।
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कोर्ट में क्यों नहीं टिक पाई पुलिस की जांच, पिता—भाई और सिमरन सब बयानों से पलटे
कोर्ट में आरोपियों की तरह से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश सिंह पैरवी कर रहे थे। सबसे पहले हत्या की एफआईआर लिखाने वाले पिता हरपाल सिंह ने कोर्ट में अपनी गवाही पलट दी। उन्होंने कोर्ट में बयान दिया कि वो सिमरन को नहीं जानते और ना ही सन्नी का कोई फोन उनके छोटे बेटे उमेश के पास आया और ना ही उन्होंने सन्नी की हत्या का आरोप मिंटू व उसके परिवार पर लगाया। उन्होंने मिंटू और अन्य आरोपियों को पहचानने से भी इनकार कर दिया। इसके बाद सन्नी के छोटे भाई उमेश कुमार ने भी पलटी मारी ओर कहा कि सन्नी ने उन्हें ये नहीं बताया था कि वो हरिद्वार सिमरन से मिलने जा रहा है।
वहीं हत्या के केस की प्रमुख गवाह सिमरन (बदला हुआ नाम ) ने भी कोर्ट में बताया कि वो सन्नी को जानती थी लेकिन सन्नी से उसका कोई संबंध नहीं था। सिमरन ने अपने भाई मिंटू पर हत्या की बात से भी इनकार कर दिया और कहा कि वो नहीं जानती कि सन्नी की हत्या किसने की है क्योंकि उस समय वो अपने ससुराल ऋषिकेश में थी। अब चूंकि घटना का कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह नहीं था इसलिए अब पूरा केस परिस्थितिजनक साक्ष्यों पर आधारित हो चला। हालांकि, सिमरन के धारा 164 के बयान महत्वपूर्ण थे लेकिन एडवोकेट राकेश सिंह ने इसका विरोध ये कहते हुए किया ये बयान प्रमुख साक्ष्य नहीं है। वहीं प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश सहदेव सिंह की अदालत ने भी इसे स्वीकार नहीं किया और आदेश दिया कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा जिसके कारण सभी को हत्या के आरोप से बरी कर दिया गया।
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बडा सवाल आखिर सन्नी की किसने मारा
18 अगस्त को अदालत ने आरोपियों को सन्नी की हत्या के आरोपों से बरी कर दिया। लेकिन बडा सवाल ये है कि आखिर सन्नी को किसने मारा। सवाल अब ये भी है कि क्या अभियोजन अदालत के इस फैसले को उपरी अदालत में चुनौती देगा या फिर पुलिस सन्नी की हत्या की जांच दोबारा करेगी। वरिष्ठ अपराध संवाददाता कुणाल दरगन ने बताया कि सन्नी हत्याकांड अपने समय का बहुत बडी घटना थी और पुलिस ने जल्द इसका खुलास भी कर दिया था। लेकिन, अदालत में आरोपों को साबित करना आसान नहीं होता है, खासतौर पर तब जबकि गवाह अपने बयानों से पलट जाए। अब जबकि कोर्ट ने पांचों आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया है तो ये सवाल वाजिब है कि आखिर सन्नी की हत्या किसने की और क्यों की।